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पत्र : ब्रिटिश एजेंटको


१. यह परीक्षात्मक मुकदमा फ्री स्टेटके मुख्य न्यायाधीशके पंच-फैसले के कारण आवश्यक हुआ है। पंच-फैसला कराना सम्राज्ञी-सरकारने मंजूर किया था। और, यद्यपि ट्रान्सवालके भारतीयोंके हित दांवपर चढ़े थे, इस विषयमें उनकी भावनाओंकी जाँचपड़ताल नहीं की गई। उन्होंने अमुक व्यक्तिको ही पंच नियुक्त करने का भी आदरपूर्वक विरोध किया था। परन्तु वह भी निष्फल रहा (१८९५ की ब्लू बुक सी॰ ७९११, पृष्ठ ३५, अनुच्छेद ३)।

२. उपर्युक्त सरकारी रिपोर्ट (ब्लू बुक) में प्रकाशित तारों (नं॰ ९, पृष्ठ ३४ और नं॰ १२ का सहपत्र, पृष्ठ ४६) से मालूम होता है कि सम्राज्ञी-सरकारने परीक्षात्मक मुकदमा चलाने का विचार किया है। चूंकि मुकदमा भारतीय समाजके किसी व्यक्ति के नामसे दायर किया जायेगा, इसलिए मेरा निवेदन है, यह अनुमान उचित ही होगा कि खर्च सम्राज्ञी-सरकार देगी।

३. यद्यपि १८८४ के समझौते (कन्वेंशन) की धारा १४ से ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंको संरक्षण प्राप्त है, फिर भी उनका दरजा गिराने और उनपर बाधा-निषेध लादने की कार्रवाइयाँ की गई है। इन कार्रवाइयोंके खिलाफ संघर्ष करने में वे पहले ही भारी खर्च उठा चुके हैं। उनकी आर्थिक स्थिति अपेक्षाकृत ऐसी नहीं है कि वे इस तरहका कोई भार सहन कर सकें। मुझे आशा है कि आप अपने तारमें खर्चसम्बन्धी निवेदनके इन आधारोंका आशय दे देंगे।[१]

मैं अपनी ओरसे और जिस शिष्ट-मण्डलको आज आपने कृपापूर्ण मुलाकात दी, उसकी ओरसे आपको एक बार फिर धन्यवाद देता हूँ कि आप हमसे इतने सौजन्यके साथ मिले और आपने हमारी बातें इतने धैर्य और सहृदयताके साथ सुनी। शिष्टमण्डलकी ओरसे,

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स : साउथ आफ्रिका, जनरल, १८९७
  1. ब्रिटिश एजेंटने यह निवेदन २५ मईको औपनिवेशिक सचिवको पहुँचा दिया गया था। परन्तु सम्राज्ञी सरकारने इस मांग को स्वीकार नहीं किया था।