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पत्र : नेटालके औपनिवेशिक सचिवको

"सेवामें,

महामहिमामयी विक्टोरिया, ईश्वरकी कृपासे इंग्लैंड तथा आयरलैंडकी रानी, धर्मकी संरक्षिका, भारतकी सम्राज्ञी,

परम कृपालु सार्वभौम सम्राज्ञी,
हम..................."
इसके नीचे "डर्बन, मई ......१८९७" भी लिख दीजिएगा।

श्री जोजेफ़ तथा लारेंसके पाससे पत्र बिलकुल आया ही नहीं। इसका कारण समझमें नहीं आता। मेरा बुधवारको रवाना होना सम्भव है।

मो॰ क॰ गांधीके प्रणाम

गुजरातीकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ३६७७) से।

५२. पत्र : नेटालके औपनिवेशिक सचिवको

[डर्बन]
२ जून, १८९७

सेवामें
माननीय औपनिवेशिक सचिव
पीटरमैरित्सबर्ग
महोदय

नेटालके भारतीय समाजके प्रतिनिधियोंका इरादा गत अधिवेशनके भारतीय-विधेयकोंके[१] सम्बन्धमें, जिनका आखिरी दस्ता कलके गज़टमें प्रकाशित हुआ है, परम माननीय उपनिवेश-मंत्रीको प्रार्थनापत्र भेजने का है। अतएव मेरा आपसे अनुरोध है। कि जबतक प्रार्थनापत्र प्राप्त न हो जाये, तबतक उनके सम्बन्धमें उपनिवेश-मंत्रीके पास अपना खरीता भेजना रोके रहें।[२] प्रार्थनापत्र तैयार किया जा रहा है।

आपका आज्ञानुवर्ती सेवक,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
पीटरमैरित्सबर्ग आर्काइव्ज़ : संदर्भ सी॰ एस॰ ओ॰ ३७८९/९७
  1. यह संघरोध, प्रवासी-प्रतिबन्धक, विक्रेता-परवाना और गैर-गिरमिटया भारतीय संरक्षण विधेयकका है।
  2. खरीता पहले ही भेजा जा चुका था। देखिए पृ॰ २८२।