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दक्षिण अफ्रीकावासी ब्रिटिश भारतीयोंकी कष्ट-गाथा

तो पशु है—"एक काली और दुतली चीज", "जी-भरके कोसने लायक एशियाई गन्दगी!"

एक और कानून है, जिसमें कहा गया है कि आदिवासियों और भारतीयोंके पास गाय-बैलोंका गल्ला ले जाते समय खास किस्मके परवाने होने चाहिए। डर्बनमें एक उप-नियम है, जिसके जरिये आदिवासी नौकरों और "एशियाकी असभ्य जातियोंके अन्य लोगों" के पंजीकरणका विधान किया गया है। इसके पीछे यह मान्यता है कि भारतीय बर्बर हैं। आदिवासियोंके पंजीकरणका तो एक बहुत अच्छा कारण मौजूद है कि उन्हें अभीतक श्रमकी प्रतिष्ठा और आवश्यकता सिखाई ही जा रही है। परन्तु भारतीय उन बातोंको जानते हैं, और वे जानते हैं इसीलिए उन्हें लाया गया है। फिर भी उन्हें आदिवासियों की कोटिमें शामिल करने का सुख प्राप्त करने के लिए उनका पंजीकरण भी आवश्यक कर दिया गया है। जहाँतक मैं जानता हूँ, नगरके पुलिस-सुपरिटेंडेंटने इस कानूनको कार्यान्वित कभी नहीं किया। एक बार मैंने एक भारतीयकी पैरवी करते हुए आपत्ति की थी कि वह पंजीकृत नहीं है। सुपरिटेंडेंटने इस आपत्तिपर नाराजी जाहिर की और कहा कि मैंने कभी यह कानून भारतीयों पर लागू नहीं किया। उसने मुझसे सवाल किया कि क्या आप भारतीयोंको अपमानित कराना चाहते हैं? फिर भी, कानून तो मौजूद है ही। उसका उपयोग कभी भी दमन-यन्त्र के रूपमें किया जा सकता है।

परन्तु हमने कभी इनमें से किसी निर्योग्यताको दूर कराने का प्रयत्न नहीं किया। हम उनकी कठोरताको स्थानिक रूपसे कम कराने के जो प्रयत्न कर सकते हैं, सो कर रहे हैं। हालमें हम नये कानून न बनने देने और जो बन चुके हैं, उन्हें रद कराने में ही अपनी सारी शक्ति लगा रहे हैं। परन्तु इसका उल्लेख करने के पहले कुछ और उदाहरणों द्वारा बता कि भारतीयोंको और भी अनेक रूपोंमें देशी लोगोंके स्तरपर रखा जाता है। रेलवे स्टेशनोंके पाखानोंपर लिखा होता है : "आदिवासियों और एशियाइयोंके लिए।" डर्बनके डाक-तारघरमें आदिवासियों और एशियाइयोंके लिए अलग और यूरोपीयोंके लिए अलग प्रवेश द्वार थे। हमें इससे बहुत अधिक अपमान महसूस हुआ। खिड़कियोंपर तैनात मुहरिर प्रतिष्ठित भारतीयोंका भी अपमान किया करते थे, और सब तरहकी गालियां सुनाते थे। हमने अधिकारियोंको यह द्वेषजनक भेद-भाव मिटा देनेके लिए प्रार्थनापत्र दिया और उन्होंने अब आदिवासियों, भारतीयों और यूरोपीयोंके लिए तीन पृथक् प्रवेश-द्वार बना दिये हैं।

अबतक भारतीयोंने उपनिवेशके सामान्य मताधिकार-कानूनके अन्तर्गत मताधिकारका उपभोग किया है। इस कानूनके अनुसार ५० पौंडकी अचल सम्पत्ति रखनेवाले या १० पौंड सालाना किराया देनेवाले बालिग पुरुषका नाम मतदाता-सूचीमें शामिल किया जा सकता है। आदिवासियोंके लिए एक विशेष मताधिकार-कानून है। पहले कानूनके अन्तर्गत १८९४ में, जबकि यूरोपीय और भारतीय दोनों समाजोंकी आबादी लगभग बराबर थी, यूरोपीय मतदाताओंकी संख्या ९, ३०९ और भारतीय मतदाताओंकी २५१ थी। फिर भारतीय मतदाताओंमें से जीवित केवल २०३ ही थे।