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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

निवेशमें संक्रामक रोग आ सकता है तो उन अन्य यात्रियोंसे भी तो वैसा हो सकता है जिनका कि सम्पर्क उसके साथ हो चुका है।

प्रवासी-प्रतिबन्धक विधेयकमें अन्य बातोंके अतिरिक्त एक विधान यह भी है कि जो व्यक्ति निपट कंगाल हो तथा जिसके सरकारपर या जनतापर बोझ बन जानेकी संभावना हो और जो विधेयककी अनुसूचीमें दिये हुए रूपमें उपनिवेश-सचिवके नाम प्रार्थनापत्र न लिख सके, उसे निषिद्ध प्रवेशार्थी माना जाये। इस प्रकार, जो भारतीय किसी भारतीय भाषाका तो विद्वान् होगा, परन्तु कोई भी यूरोपीय भाषा नहीं जानता होगा, वह अस्थायी रूपसे भी नेटालमें नहीं उतर सकेगा। वह ट्रान्सवाल के विदेशी प्रदेशमें तो जा सकेगा, परन्तु नेटालकी भूमिपर पाँवतक नहीं रख सकेगा। ऑरेंज फ्री स्टेट तकमे कोई भारतीय दो महीनेतक जाब्तेकी कोई कार्रवाई किये बिना रह सकता है, परन्तु नेटालके ब्रिटिश उपनिवेशमें नहीं। इस प्रकार यह विधेयक इस मामले में इन दोनों स्वतन्त्र देशों से भी आगे बढ़ गया है। यदि कोई भारतीय राजा संसारका भ्रमण करता हुआ कहीं नेटाल पहुँच गया तो वह भी, विशेष अनुमति प्राप्त किये बिना, यहाँ नहीं उतर सकेगा। प्रवासी कानून लागू होने के बाद, मारिशस जानेवाले बहुत-से जहाज भारतीय यात्रियोंको लेकर यहाँसे गुजरते हैं, परन्तु जब वे यहाँके बन्दरगाहमें खड़े होते हैं तब उनके भारतीय यात्रियों को घूमने-फिरने या हवा खाने के लिए भी यहाँ नहीं उतरने दिया जाता। प्रवासी विभागकी आज्ञासे उनपर सख्त निगरानी रखी जाती है और उनका असबाब जहाज के गोदाममें बन्द कर दिया जाता है, जिससे कि वे कहीं नजर बचाकर तटपर न उतर जायें। दूसरे शब्दोंमें इसका अर्थ यह होता है कि ब्रिटिश प्रजाके साथ, ब्रिटिश शासित भूमिमें ही, केवल भारतीय होने के कारण प्रायः कैदियोंका-सा ही व्यवहार किया जाता है।

अधिकृत रूपसे कहा गया है कि कोई सरकार स्वप्नमें भी इस कानूनको भारतीयोंकी तरह ही यूरोपीयोंपर लागू नहीं करेगी। उपधारा ३ के जिस (ख) भागको अब संशोधित कर दिया गया है, उसकी चर्चा करते हुए विधेयकके दूसरे वाचनमें प्रधानमंत्रीने कहा था :

जहाँतक प्रवासियोंके पास २५ पौंडकी रकम होनेकी बात है, जब ये शब्द दाखिल किये गये थे, तब मुझे कभी सूझा ही नहीं था कि यह व्यवस्था युरोपीयोंपर लागू की जायेगी। अगर सरकार मूर्खतासे काम ले तो उनपर जरूर लागू की जा सकती है। परन्तु इसका उद्देश्य एशियाइयोंसे निपटने का है। कुछ लोगोंका कहना है कि उन्हें ईमानदारीका, सीधा-सच्चा रास्ता पसन्द है। जब कोई जहाज उलटी हवामें चलता है तो उसे थोड़ी देरके लिए दिशा बदल लेनी पड़ती है और फिर धीरे-धीरे वह लक्ष्यपर पहुँच जाता है। जब आदमीके सामने कठिनाइयाँ आती हैं तो वह उनसे लड़ता है, और अगर वह जीत नहीं पाता तो उनसे कतराकर निकल जाता है, ईटकी दीवारपर टक्करें मार-मारकर सिर फोड़ता नहीं रहता।