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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको


विक्रेता परवाना विधेयक[१] सम्भवतः सबसे खराब है। उसके अनुसार सिर्फ यही जरूरी नहीं है कि व्यापारी लोग अपना हिसाब-किताब अंग्रेजीमें रखें, बल्कि वह परवाना-अधिकारीको परवाने देने या उन्हें नया करने से इनकार कर देनेका निधि अधिकार भी प्रदान करता है। उसके निर्णयके खिलाफ उच्चतम न्यायालयके पास अपील करने का अधिकार भी वादीको नहीं है। इस तरह वह ब्रिटिश संविधान के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तको नष्ट-भ्रष्ट करनेवाला है। प्रार्थी विवेयकके प्रति अपनी आपत्तियाँ विधानसभाके एक सदस्य श्री टैथमके शब्दोंमें ही सबसे अच्छी तरह व्यक्त कर सकते हैं :

मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं थी कि यह विधेयक वर्तमान व्यापारियोंका एकाधिकार स्थापित कर देगा। जिन सदस्योंने विधेयकपर बहस की है, उन्होंने केवल व्यापारियोंको दृष्टिसे बहस की है, उपभोक्ताओंकी दृष्टिसे नहीं। कानून जो एक अत्यन्त विनाशकारी रास्ता अख्तियार कर सकता है वह व्यापारकी रोकथाम करने का रास्ता है। और यह सिद्धान्त यहाँतक मान्य किया जा चुका है कि अगर साबित किया जा सके कि दो व्यक्तियोंके बीचका कोई निजी इकरारनामा व्यापारपर प्रतिबन्ध लगाकर समाजके हितोंको हानि पहुँचाता है तो इंग्लैंडके सामान्य कानूनके अनुसार उसे अवैध ठहराया जा सकता है। सारी दुनियामें इस बातको व्यापारका सिद्धान्त मान लिया गया है कि प्रतिद्वंद्विता-जैसी कोई चीज नहीं है। यह बात सिर्फ प्रतिद्वंद्वियोंके लिए नहीं, उपभोक्ताओंके लिए भी है। विधेयक उपभोक्ताओंको हानि पहुँचाकर सिर्फ व्यापारियोंका लाभ बढ़ानेका काम करेगा। उन्होंने कहा—मैं इस विधेयकपर एशियाइयोंका दमन करनेवाले विधेयकको दृष्टिसे विचार नहीं करता, बल्कि जिस दृष्टिसे यह सदनके सामने पेश किया गया है, उसी दृष्टिसे विचार करता हूँ। विधेयकमें समाजके सब अंग शामिल हैं, चाहे वे यूरोपीय हों, चाहे एशियाई। और उसमें भयानक ढंगकी व्यवस्थाएँ हैं। उसमें कहा गया है कि परवाने देनेवाला एक ही व्यक्ति होगा और जो परवाने आज जारी हैं उन्हें वह व्यक्ति वापस ले सकेगा। यह देहातोंके लिए है। शहरों और म्युनिसिपल इलाकोंमें इसका प्रयोग कैसे होगा? उदाहरणके लिए डर्बनको ले लीजिए। नगर-परिषदें अधिकतर सदस्य ऐसे हो सकते हैं जो समाजके हितोंपर विचार करने के पहले अपने हितोंपर विचार करें और वहाँ व्यापार करने के परवाने देनेसे इनकार कर दें। प्रधानमंत्री कह सकते हैं कि इन लोगोंपर जनताके मतोंका नियन्त्रण रहता है। परन्तु जब सारे समुदायके खिलाफ एक व्यक्तिविशेषका मामला हो, तब जनताके मतोंका प्रभाव किस तरह डाला जायेगा?

  1. विधेयकके पाठके लिए देखिए पृ॰ ३००–२।