पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२
सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

१८९४ में यूरोपीयोंके मत भारतीयोंके मतसे ३८ गुना थे। फिर भी सरकारने सोचा या सोचने का बहाना किया कि एशियाई मतोंके यूरोपीय मतोंको निगल जानेका सच्चा खतरा पैदा हो गया है। इसलिए उसने नेटालकी विधानसभामें एक विधेयक पेश किया, जिसका मंशा उन एशियाइयोंको छोड़कर, जिनके नाम उस समय वाजिब तौरपर मतदाता-सूचीमें दर्ज थे, शेष सारे एशियाइयोंका मताधिकार छीन लेना था। विधेयककी प्रस्तावनामें कहा गया था कि एशियाई चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाओंसे परिचित नहीं हैं। इस विधेयकके विरुद्ध हमने नेटालकी विधानसभा[१] और विधानपरिषद्[२] दोनोंको प्रार्थनापत्र भेजे। परन्तु यह व्यर्थ हुआ। तब हमने लॉर्ड रिपनको[३] प्रार्थनापत्र[४] भेजा और उसकी नकलें भारत तथा इंग्लैंडकी जनता और समाचार-पत्रोंको भी भेजी। इसमें हमारा मंशा उनकी सहानुभूति एवं सक्रिय समर्थन प्राप्त करना था और हम कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार करते हैं कि कुछ हदतक ये दोनों हमें प्राप्त भी हुए।

फलतः वह कानून अब रद कर दिया गया है। उसके बदले एक दूसरा कानून बनाया गया है, जिसमें विधान है : "ऐसे किन्हीं लोगोंके नाम मतदाता-सूचीमें दर्ज नहीं किये जायेंगे जो (यूरोपीयोंके वंशज न होते हुए) इस देशके आदिवासी हों, या ऐसे देशोंके निवासियोंकी पुरुष-शाखाके वंशज हों, जिनमें अबतक संसदीय मताधिकारके आधारपर स्थापित प्रातिनिधिक संस्थाएँ नहीं हैं। यदि ऐसे लोग अपने नाम दर्ज कराना चाहें तो पहले उन्हें स-परिषद्-गवर्नरसे आदेश लेना होगा कि वे इस कानूनके अमलसे मुक्त कर दिये गये हैं।" उन लोगोंको भी इस कानूनके अमलसे मुक्त कर दिया गया है, जिनके नाम किसी मतदाता सूची में वाजिब तौरसे शामिल है। यह विधेयक पहले श्री चेम्बरलेनके पास भेजा गया था। उन्होंने इसे अपनी अनुमति लगभग दे दी है। इसपर भी हमने इसका विरोध करना उचित समझा और इसका निषेध करा देनेके अभिप्रायसे श्री चेम्बरलेनको एक प्रार्थनापत्र[५] भेजा है। आशा है कि हमें अबतक जितना समर्थन प्राप्त हुआ है, उतना ही अब भी प्राप्त होगा। हम मानते हैं कि इस प्रकारके सब कानूनोंका सच्चा प्रयोजन भारतीयोंके साथ ऐसा भेदभावपूर्ण व्यवहार करना है जिससे कि किसी भी प्रतिष्ठित भारतीयका उस देशमें रहना असम्भव हो जाये। एशियाईयों के मतोंका यूरोपीय मतोंको निगल जाने या एशियाइयोंके दक्षिण आफ्रिकाका शासन हथिया लेनेका कोई सच्चा खतरा उपस्थित नहीं है। फिर भी विधेयकके समर्थनमें इसी मुद्देपर मुख्य रूपसे जोर दिया गया था। उपनिवेशमें परे प्रश्नकी भली-भाँति छानबीन कर ली गई है और श्री॰ चेम्बरलेनके पास निर्णयके लिए पूरी-पूरी सामग्री मौजूद है। स्वयं सरकारने अपने ही पत्र

  1. देखिए खण्ड १, पृ॰ १३५–३९।
  2. देखिए खण्ड १, पृ॰ १४४–१४६।
  3. जाॅर्ज फ्रेडरिक सेम्युअल राॅबिंसन (१८२७–१९०९) रिपन के प्रथम माक्विस; भारतके गवर्नर जनरल, १८८०–८४; उपनिवेश मन्त्री, १८९२–९५।
  4. प्रर्थनापत्रके पाठके लिए देखिए खण्ड १, पृ॰ १५३–६२।
  5. देखिए खण्ड १, पृ॰ ३३३–५१।