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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

अलावा, प्रार्थी आपका ध्यान विधेयक-विरोधी उस दलीलकी ओर भी आकर्षित करते हैं, जो विधानसभाको दिये गये पूर्वोक्त प्रार्थनापत्रमें पेश की गई है (परिशिष्ट ङ)। प्रार्थियोंको आशा है कि इन सब बातोंपर विचार करके विधेयकका निषेध कर दिया जायेगा। पुलिसको गिरमिटिया कानून के अन्तर्गत गिरफ्तारी करने में सावधानी बरतनेके निर्देश दे देनेसे कठिनाई हल हो जाती है।

अन्त में, प्रार्थी विनती करते हैं कि किसी भी कानूनका उसके कार्यान्वित होनेसे दो वर्षके अन्दर निषेध कर देनेका जो अधिकार संविधान-कानूनके अनूसार सम्राज्ञीसरकारके पास सुरक्षित है, उसके बलपर उपर्युक्त विधेयकोंका निषेध कर दिया जाये। अथवा, उपर्युक्त विधेयकोंका या उनके किसी अंशका निषेध करने से इनकार करने के पहले सम्राज्ञी-सरकार ऊपर बताये हुए ढंगकी जाँच करने का आदेश दे। भारतके बाहर रहनेवाले भारतीयोंके नागरिक दर्जे के बारेमें एक निश्चित घोषणा की जाये। और अगर उपर्युक्त कानूनोंका निषेध करना सम्भव न समझा जाये तो गिरमिटिया भारतीयोंको नेटाल भेजना बन्द कर दिया जाये, या ऐसी दूसरी राहत दी जाये, जिसे सम्राज्ञी-सरकार उचित समझे।

और न्याय तथा दयाके इस कार्य के लिए प्रार्थी, कर्त्तव्य समझकर, सदा दुआ करेंगे, आदि-आदि।

(ह॰) अब्दुल करीम हाजी आदम
तथा अन्य

 

परिशिष्ट क नं॰

१,१८९७

अधिनियम
"संगरोध-सम्बन्धी कानूनोंमें संशोधनार्थ"

नेटालकी विधानपरिषद और विधानसभाके परामर्श तथा सम्मति से महा महिमामयी सम्राज्ञी निम्नलिखित कानून बनाती हैं :

१. जब कभी १८८२ के चौथे कानून के अनुसार किसी स्थानको संक्रामक रोगसे आक्रान्त घोषित किया गया हो, सपरिषद गवर्नर एक और घोषणा करके आदेश दे सकता है कि वैसे स्थान से आनेवाले किसी जहाज से किसी व्यक्तिको उतरने न दिया जाये।

२. ऐसा कोई भी आदेश उन जहाजोंपर भी लागू होगा, जिनमें रोगाक्रान्त घोषित स्थानोंसे आये हुए यात्री सवार हों—भले ही वे किसी दूसरे स्थानसे क्यों न चढ़े हों, और जहाज घोषित स्थानको न गया हो।

३. ऊपर बताये हुए स्वरूपका कोई भी आदेश तबतक अमलमें रहेगा, जबतक कि वह दूसरे आदेश द्वारा वापस न ले लिया जाये।