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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

थोक या फुटकर विक्रेताओंके लिए आवश्यक वार्षिक परवाने देगा, किन्तु ये परवाने १८९६ के अधिनियम ३८ के अन्तर्गत न होंगे।

४. जो भी व्यक्ति १८८४ के कानून नं॰ ३८, या उसी तरहके किसी स्टाम्प अधिनियम या इस अधिनियमके अन्तर्गत परवाने देनेके लिए नियुक्ति किया जायेगा उसे इस अधिनियमके मानीमें "परवाना-अधिकारी" माना जायेगा।

५. परवाना-अधिकारीको १८९६ के अधिनियम ३८ के मातहत दिये जानेवाले परवानों को छोड़कर थोक या फुटकर व्यापारके अन्य परवाने देने या न देनेका विवेकाधिकार होगा। परवाना-अधिकारी द्वारा परवाना देने या न देने के फैसलेपर कोई अदालत पुनविचार न कर सकेगी। न किसी अदालतको उसे उलटने या उसमें हेरफेर करने का अधिकार होगा। किन्तु इसमें अगली धारामें दिया हुआ अपवाद रहेगा।

६. अगर परवाना नगर या नगर-क्षेत्रके लिए मांगा गया हो तो आवेदक या उस मामले में रुचि रखनेवाले किसी व्यक्तिको नगर-परिषद या नगरे-निकायके सामने, और अगर वह नगर या नगर क्षेत्रसे पृथक् किसी स्थान के लिए माँगा गया हो तो उस विभागमें १८९६ के शराब अधिनियमके-मातहत नियुक्त परवाना-निकाय (लाइसेन्सिग बोर्ड) के सामने अपील करने का अधिकार होगा। और नगर परिषद, नगर-निकाय या परवाना-निकाय परवाना देने या नामंजूर करने का आदेश दे सकेगा।

७. ऐसे किसी व्यक्तिको परवाना नहीं दिया जायेगा, जो नगर-परिषद, नगरनिकाय या परवाना-निकायके परवाना-अधिकारीको सन्तोष न दिला सके कि वह जो व्यापार करना चाहता है, उसके लिए जरूरी हिसाब-किताब अंग्रेजीमें रखने के बारेमें १८८७ के दिवालिया-कानून ४७, धारा १८०, उपखण्ड (क) की शर्ते पूरी करने में समर्थ है।

८. ऐसे किसी मकानमें व्यापार करने का परवाना नहीं दिया जायेगा, जो वांछित व्यापारके लिए अनुपयुक्त हो, या जिसमें सफाईकी उचित और पर्याप्त व्यवस्था न हो, या जहाँ गृह-परिसर रहने और माल रखने—दोनोंके काम आता हो, परन्तु वहाँ सामान रखने के कमरों या गोदामोंके अलावा, विक्रेताओं, मुहरिरों और नौकरों के रहने के लिए दूसरा उपयुक्त स्थान न हो।

९. जो व्यक्ति बिना परवाने के थोक या फुटकर व्यापार करेगा, या जो परवानाशुदा गृह-परिसरकी हालत परवाना न देने लायक रखेगा, उसे इस कानूनका भंग करनेवाला माना जायेगा। उसे हर अपराधके लिए २० पौंडतक जुर्मानेकी सजा हो सकेगी। जुर्मानेकी वसूली अदालतमें 'क्लार्क ऑफ द पीस' द्वारा की जा सकेगी। अगर कानूनका भंग किसी नगर या नगर-क्षेत्रमें हुआ हो तो जुर्मानेकी वसूली नगर-परिषद या नगरनिकाय द्वारा नियुक्त अधिकारी करेगा।

१०. किसी भी नगर या नगर-क्षेत्रके अन्दर किसी भी व्यापार या गृह-परिसरसे पूर्वोक्त धाराके अनुसार वसूल किया गया सारा जुर्माना उस नगर या नगर-क्षेत्रके कोषमें जमा किया जायेगा।