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पत्र : टाउन क्लार्कको

आ गये हैं। सम्राज्ञी-सरकारको औपनिवेशिक विधान-मंडलों द्वारा स्वीकृत किसी भी काननका दो वर्षके अन्दर निषेध कर देनेका अधिकार है। इसी व्यवस्थाके बलपर प्रार्थी श्री चेम्बरलेनके हस्तक्षेपका भरोसा रखते हैं।

मेरे नम्र मत से विधेयकोंको पढ़ लेना ही उनके विरुद्ध निर्णय करने के लिए काफी है। उनपर टीका-टिप्पणी करना अनावश्यक मालूम होता है। नेटालमें भारतीयों पर निर्योग्यताओंका जो ढेर लादा जा रहा है, उसके खिलाफ अगर जबरदस्त लोकमत न हो तो हमारे दिन इने-गिने ही समझिए। भारतीयोंको सोच-समझकर उत्पीड़ित करने में नेटाल दोनों गणराज्योंको[१] मात दे रहा है। और, नेटाल ही भारतीयोंके बिना अपनी गुजर सबसे कम कर सकता है। उसे उनको गिरमिटमें बांधकर ही रखना है। वह उन्हें स्वतन्त्र लोगोंके तौरपर रखेगा ही नहीं। क्या ब्रिटेन और भारतकी सरकारें इस अन्यायपूर्ण व्यवस्थाको रोकेंगी नहीं? क्या वे नेटालको गिरमिटिया मजदूर भेजना बन्द नहीं करेंगी? हमारी आपसे केवल इतनी ही विनती है कि आप हमारे पक्षमें फिरसे दूना प्रयत्न करें। इससे हमें अब भी न्याय पानेकी आशा हो सकती है।

आपका आज्ञानुवर्ती सेवका,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजीकी कार्यालय प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ २४४८) से।

५९. पत्र : टाउन क्लार्कको[२]

५३ ए, फील्ड स्ट्रीट
डर्बन
३ सितम्बर, १८९७

विलियम कूली महोदय
(टाउन क्लार्क)
डर्बन
महोदय,

श्री वी॰ लॉरेन्स मेरे दफ्तरमें मुहरिर हैं। उन्हें अक्सर शामको सभाओंमें शामिल होने या तमिल पढ़ाने के लिए बाहर जाना पड़ता है। ये काम ९ बजे रातके पहले खत्म नहीं होते। उनको दो-तीन बार पुलिसने रोका-टोका था और उनसे परवाना दिखाने को कहा था। मैं यह बात पुलिस-सुपरिटेंडेंटकी जानकारीमें लाया तो उन्होंने

  1. ट्रान्सवाल और ऑरेंज फ्री स्टेटके बोअर गणराज्य।
  2. सरकारी कागज-पत्रोंमें प्राप्त मूल के प्रति हाशियेमें लिखा है : सिफारिश की—हस्ताक्षर आरा॰ सी॰ अलेक्जैंडर, पुलिस सुपरिटेंडेंट।

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