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पत्र : दादाभाई नौरोजी तथा अन्य लोगों को

श्री अटर्नी स्मिथ बताते हैं कि ये व्यक्ति कानून मंजूर होनेके पहले नेटालमें थे।

—मैं पहली आपत्ति मंजूर करता हूँ। अभियुक्त बरी किये गये।
(ह॰) ऐलेक्स डी॰ गिल्सन
(रेजिडेंट मजिस्ट्रेट)

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स, साउथ आफ्रिका जनरल, १८९७।

६१. पत्र : दादाभाई नौरोजी तथा अन्य लोगोंको[१]

[१८ सितम्बर, १८९७ के पूर्व][२]

श्रीमान्,

हम जानते हैं कि जिन लोक सेवकोंकी भारतीय मामलोंमें रुचि है उनका ध्यान इस समय मुख्यतया पूना और भारतके अन्य भागोंकी मुसीबतोंकी[३] ओर लगा हुआ है। यदि नेटालके भारतीयोंकी स्थिति गम्भीर न होती तो इस समय हम आपके मूल्यवान समय और अवधानमें दखल न देते।

'नेटाल गवर्नमेंट गजट' में इस सप्ताह श्री चेम्बरलेनका वह भाषण प्रकाशित हुआ है जो उन्होंने सम्राज्ञीके शासनकी हीरक-जयन्तीके अवसरपर लंदनमें एकत्र हुए उपनिवेशोंके प्रधानमंत्रियोंके सामने दिया था। उक्त भाषणमें उन्होंने इस उपनिवेश तथा ब्रिटिश साम्राज्यके अन्य भागोंमें भारतीयोंके प्रवास-सम्बन्धी कानूनोंके विषयमें जो कहा था वह यों प्रकाशित हुआ है...[४]

श्री चेम्बरलेनने ब्रिटिश ताजके प्रति भारतीयोंकी राजभक्ति और उनकी सभ्यताकी इस भाषणमें जो भावपूर्ण प्रशंसा की उसके बावजूद हम यह परिणाम निकाले बिना नहीं रह सकते कि उन परम माननीय सज्जनने भारतीय पक्षको सर्वथा त्याग दिया है और वे विभिन्न उपनिवेशोंकी भारतीय-विरोधी चीख-पुकारके वश हो गये हैं। उन्होंने यह तो अवश्य माना है कि ब्रिटिश साम्राज्यकी परम्पराएँ "किसी

  1. यह छपवा कर भारत और इंग्लैंडके कई लोकसेवकों को भेजा गया था। परन्तु दादाभाई नौरोजी और विलियम वेडरबर्नके अलावा और किन-किन लोगों को भेजा गया था ये पता नहीं चला।
  2. साधन-सूत्रों में तारीख नहीं है। परन्तु देखिए अगला शीर्षक जिसमें गांधीजी इसमें लिखे जाने का उल्लेख किया है।
  3. मुसीबतों का सम्बन्ध दुर्भिक्ष, प्लेग और प्रलेखन सम्बन्धी प्रबन्ध से हैं। श्री चेम्बरलेनके भाषण के सम्बन्ध में
  4. उपलब्ध प्रतिमें उल्लेखित उदाहरण नहीं है