पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/३३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०९
पत्र : दादाभाई नौरोजी तथा अन्य लोगोंको

तीय। उनके वैसा होनेकी सम्भावना इस कारण हैं कि उनकी भरती समाजके निम्नतम वर्गमें से की जाती है। यह अधिनियम बनने के तुरन्त पश्चात् भारतीय प्रवासी निकाय (इंडियन इमिग्रेशन बोर्ड)ने ४,००० गिरमिटिया भारतीयोंको बुला लेनेकी माँग स्वीकृत की थी। अबतक के लेखेमें शायद एक साथ इतने अधिक गिरमि मजदरोंकी यह सबसे बड़ी माँग है। हम नहीं कह सकते कि श्री चेम्बरलेनने इन तथ्योंकी उपेक्षा कैसे कर दी। हम तो अब भी यही कहते हैं —जैसाकि हम अब तक निरन्तर कहते आये हैं—कि भारतीयोंके विरुद्ध आन्दोलनका कारण रंग-भेद और व्यापारिक ईर्ष्या है। हमने निष्पक्ष जांच की जानेकी मांग की है, और यदि वह मान ली गई तो हमें तनिक भी सन्देह नहीं कि इसका परिणाम यही निकलेगा कि नेटालमें भारतीयोंकी उपस्थिति उपनिवेशके लिए लाभदायक पाई जायेगी। १२ वर्ष पूर्व जिन आयुक्तोंने नेटालमें कुछ भारतीय मामलोंकी जाँच की थी, उन्होंने लिखा था कि भारतीयोंकी उपस्थिति इस उपनिवेशके लिए एक वरदान सिद्ध हुई है। सत्य तो यह है कि श्री चेम्बरलेनने व्यवहारतः यह मान लिया है कि कोई भी भारतीय भारत छोड़ते ही ब्रिटिश प्रजा नहीं रहता; और इसका भयंकर परिणाम यह हो रहा है कि हमें, प्राय: प्रतिदिन, ब्रिटिश भारतीय प्रजाओंके नेटालकी ब्रिटिश भूमिसे निकाल दिये जाने अथवा उसमें प्रविष्ट न होने दिये जानेका, और फलतः उनके ट्रान्सवाल या डेलागोआ-बे की विदेशी भूमियोंमें जाने के लिए विवश होनेका, दुःखदायी दश्य देखना पड़ रहा है। इसकी तुलनामें तो ट्रान्सवाल परदेशी-कानून एक वरदान था। जब यह कानून लागू था तब कोई भी भारतीय, नेटाल या डेलागोआ-बे या भारतसे पारपत्र लेकर, या ट्रान्सवालमें रोजगार पा लेनेपर, ट्रान्सवालमें प्रविष्ट हो सकता था। इसके अतिरिक्त, यह कानून विशेष रूपसे भारतीयोंपर ही लागू नहीं होता था। इस कारण कोई भी भारतीय—यदि वह सर्वथा केंगला ही न हो तो—टान्सवालमें प्रविष्ट हो सकता था। फिर भी डाउनिंग स्ट्रीट [ब्रिटिश सरकार का दबाव पड़नेपर ट्रान्सवालका यह कानून निरस्त कर दिया गया, क्योंकि यह विदेशियोंके बहुत विपरीत पड़ता था। दुर्भाग्यवश हमारे पक्षमें-- यद्यपि हम ब्रिटिश प्रजा है—वैसा ही दवाब ब्रिटिश भूमिमें दिखलाई नहीं पड़ता। नेटाल-अधिनियम ऐसे किसी भी भारतीयका नेटालमें प्रवेश निषिद्ध करता है जो कोई भी यूरोपीय भाषा पढ़ और लिख न सकता हो। इसका अपवाद केवल तब किया जायेगा जबकि वह पहले से नेटालमें बस चुका हो। इसका परिणाम यह होगा कि मुस्लिम लोग किसी मौलवीको या हिन्द' लोग किसी पण्डितको, केवल उनके अंग्रेजी न जानने के कारण नेटालमें नहीं बुला सकेंगे, भले वे दोनों अपने-अपने धर्मके कितने ही विद्वान् क्यों न हों। नेटालमें बसा हुआ कोई भारतीय व्यापारी उपनिवेशसे बाहर जाकर यहाँ फिर वापस आ सकता है, परन्तु वह अपने साथ कोई नया नौकर नहीं ला सकता। नये भारतीय नौकरों और मुनीमोंको

१. ट्रान्सवालमें आकर बसे हुए मूल हच प्रवासियोंको छोड़कर अन्य गैर-डच यूरोपीष-विशेषतः ब्रिटिश, जर्मन आदिजो बादमें जाकर वहाँ बसे। डच (बोअर) लोग उन्हें विदेशी मानते थे।