पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/३३९

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परिशिष्ट
[चेम्बरलेनके भाषणके अंश]

मुझे एक बात और कहनी है, और सिर्फ एक ही बात; यानी, मैं आपका ध्यान एक कानूनकी ओर खींचना चाहता हूँ, जो या तो कुछ उपनिवेशोंमें विचाराधीन है, या स्वीकार किया जा चुका है। उसका सम्बन्ध परदेशियों (एलिअन्स) और खास तौरसे एशियाइयोंके प्रवाससे है।

मैंने ये विधेयक देखे हैं और ये कुछ बातोंमें एक-दूसरेसे भिन्न हैं। परन्तु, नेटाल से आये हुए विधेयकको छोड़कर, इनमें से एक भी ऐसा नहीं है, जिसे हम सन्तोषकी दृष्टि से देख सकें। मैं कहना चाहता हूँ कि सम्राज्ञी-सरकार इस विषयका निबटारा करने के उपनिवेशोंके ध्येयों और उनकी आवश्यकताओंके महत्त्वको पूरी तरह मान्य करती है। ये उपनिवेश लाखों और करोड़ों एशियाइयोंके अपेक्षाकृत अधिक निकटवर्ती हैं; और इनके गोरे निवासियोंके इस संकल्पके प्रति हमारी पूरी सहानुभूति है कि जो लोग सभ्यतासे पराये हैं, धर्मसे पराये हैं, रीति-नीतिसे पराये हैं और इसके अलावा, जिनकी बाढ़से मजदूर-आबादीके वर्तमान अधिकारोंमें बहुत गम्भीर बाधा पड़ेगी, उनकी भरमार उपनिवेशोंमें नहीं होने दी जायेगी। इस तरहके प्रवासको, मैं खूब समझता हूँ, उपनिवेशोंके हितके लिए सब जोखिमें उठाकर भी रोकना ही होगा। और इस उद्देश्य से पेश किये गये प्रस्तावोंका हम कोई विरोध नहीं करेंगे। परन्तु हमारी आपसे मांग है कि आप साम्राज्यकी परम्पराओंका ध्यान रखें, जो जाति अथवा रंगके पक्ष-विपक्षमें कोई भेदभाव नहीं करतीं; और यह कि, सम्राज्ञीकी सब भारतीय प्रजाओंको, या सब एशियाइयोंको भी, उनके रंगके कारण या उनकी प्रजाति (रेस) के कारण निकाल देना उन लोगोंको इतना संतापकारी होगा कि, मुझे सर्वथा निश्चय है, सम्राज्ञीको उसे स्वीकार करना पड़े तो वह उनके लिए अत्यन्त पीड़ाजनक बात होगी। जरा सोचिए, अपनी इस देशकी यात्राके दौरान आपको क्या देखने को मिला है। ब्रिटिश संयुक्त राज्य अपने सबसे बड़े और सबसे उज्ज्वल अधीन देशके रूपमें उस विशाल भारत-साम्राज्यका मालिक है, जिसमें ३०,००,००,००० प्रजाजन निवास करते हैं। वे ताजके प्रति उतने ही वफादार हैं जितने कि आप स्वयं हैं और उनमें लाखों लोग रोएँ-रोएँ से उतने ही सभ्य हैं जितने कि स्वयं हम हैं। वे, अगर इस बातका कोई महत्त्व हो, तो इस अर्थमें हमसे ज्यादा अभिजात है कि उनकी परम्पराएँ और उनके परिवार ज्यादा पुराने हैं। वे धनवान हैं, संस्कारी हैं, विशिष्ट वीर हैं; वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने पूरी-की-पूरी सेनाएँ लाकर रानीकी सेवामें समर्पित कर दी है और भारतीय विद्रोह-जैसे अत्यन्त कठिन और संकटमय अवसरोंपर अपनी राजभक्तिके द्वारा साम्राज्यकी रक्षा की है। मैं कहता हूँ कि आप लोग, जिन्होंने

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