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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह सब देखा है, इन लोगोंका अनादर नहीं कर सकते। मेरे खयालसे उनका अनादर करना, जिससे वैमनस्य, असन्तोष, सन्ताप पैदा होगा, और जो न केवल महामहिमामयी सम्राज्ञीकी, बल्कि उनकी तमाम प्रजाकी भावनाओंके विपरीत पड़ेगा, आपके मतलबके लिए बिलकुल अनावश्यक भी है।

मेरे नम्र खयालसे तो आपको जिस बातका निबटारा करना है वह है, प्रवासियों की पात्रता-अपात्रताकी। कोई आदमी सिर्फ इसलिए जरूरी तौरपर अवांछनीय नहीं हो जाता कि उसका रंग हमारे रंगसे भिन्न है, बल्कि इसलिए अवांछनीय होता है कि वह गन्दा है, या वह दुराचारी है, या वह कंगाल है, या उसमें कोई दूसरी आपत्तिजनक बात है जिसकी संसदके अधिनियम द्वारा व्याख्या की जा सके और जिसके आधारपर उन सब लोगोंको निकालने की व्यवस्था की जा सके, जिन्हें आप सचमुच निकालना चाहते हों। सो, सज्जनो, यह बात हमारे बीच मैत्रीपूर्ण सलाहमशविरेकी है। जैसाकि मैं बता चुका हूँ, नेटाल-उपनिवेशने एक ऐसा उपाय निकाल लिया है। वह, मेरा विश्वास है, उसके लिए पूर्ण सन्तोषप्रद है। और याद रखिए, इस विषयमें उसकी दिलचस्पी सम्भवतः आपकी दिलचस्पीसे ज्यादा ही है, क्योंकि वह प्रवासके लिए, जो पहले से ही बहुत बड़े पैमानेपर शुरू हो चुका है, ज्यादा नजदीक है। और नेटालवालों ने एक ऐसा कानून पास कर लिया है जो, वे मानते हैं, उन्हें मनचाहा सब कुछ दे सकेगा, जिसपर उनकी [एशियाइयोंकी] उठाई आपत्ति लागू नहीं होती और जिसका इस [हमारी] आपत्तिसे भी संघर्ष नहीं है। इस आपत्तिमें तो, मुझे निश्चय है, आप मेरे साथ है। इसलिए मुझे आशा है, आपकी इस या शब्दोंका एक ऐसा मसौदा तय कर लेंगे, जिससे सम्राज्ञीकी किसी प्रजाकी भावनाओंको ठेस न पहुँचे और साथ ही, उस वर्गके लोगोंके आक्रमणसे जिनपर आस्ट्रेलियाइयोंको न्यायपूर्ण आपत्ति हो, उनके उपनिवेशोंकी रक्षा भी हो जाये।

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स : पार्लमेंटरी पेपर्स, १८९७; जिल्द २, नं॰ १५