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६२. पत्र : दादाभाई नौरोजीको

५३ ए, फील्ड स्ट्रीट
डर्बन, नेटाल
१८ सितम्बर, १८९७

माननीय दादाभाई नौरोजी
लंदन
श्रीमन्,

मुझे श्री चेम्बरलेनके भाषणके सम्बन्धमें, जो उन्होंने उपनिवेशोंके प्रधानमंत्रियोंके सम्मेलनमें दिया था, एक पत्र[१] इसके साथ भेजने का सम्मान प्राप्त हुआ है। यह पत्र नेटालवासी भारतीय समाजके प्रतिनिधियोंने आपकी सेवामें लिखा है। अखबारकी जो कतरन[२] इसके साथ है वह पत्रके छप जाने के बाद देखी गई थी। उससे पत्रमें दी हुई दलीलको भारी बल मिलता है। श्री चेम्बरलेनके भाषणसे स्वभावतः ही मारतीय और यूरोपीय दोनों समाजोंको आश्चर्य हुआ है। मैं मानता हूँ कि अगर कुछ और न किया जा सका तो भी पत्रमें जिस प्रवासी-अधिनियमका उल्लेख किया गया है उसमें परिवर्तन कराने के लिए तो आप अपने प्रबल प्रभावका उपयोग करेंगे ही। जिस प्रकारके भारतीयोंका पत्रमें जिक्र है और जिन्हें अधिनियम अभी नेटालमें प्रवेश करने से रोकता है, वे यहाँ जमी-जमाई भारतीय पेढ़ियोंके नियमित संचालनके लिए बिलकुल जरूरी तो है ही, साथ ही, यदि उन्हें उपनिवेशमें आने दिया गया तो वे यूरोपीयोंके कारबारमें किसी तरहका हस्तक्षेप भी नहीं कर सकते।

प्रवास-सम्बन्धी प्रार्थनापत्रकी[३] नकल अलग लिफाफेमें भेजी जा रही है।

आपका आज्ञानुवर्ती सेवक,
मो॰ क॰ गांधी

हस्तलिखित मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (जी॰ एन॰ २२५५) से।

  1. देखिए पिछला शीर्षक।
  2. यह बदलाव नहीं है; सम्भवतः यह सम्मेलनकी कारवाईकी अखबारी रिपोर्ट थी।
  3. देखिए पृ॰ २८२–३०३।