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पत्र : 'नेटाल मर्क्युरी'को

व्यक्ति दिखाई देता है, कहा था कि डंडीमें जिन भारतीयोंपर प्रवासी-कानूनके अनुसार मुकदमा चलाया गया था, वे भारतसे आये हुए नये आदमी थे और लुक-छिपकर उपनिवेशमें घुस आये थे। बादमें इस विषयपर सरकार और प्रदर्शन-समितिके बीचका पत्र-व्यवहार[१] प्रकाशित हुआ। उससे जनताके मनपर यह छाप पड़ी कि एक बड़े पैमानेपर प्रवासी-कानूनको टालने का प्रयत्न किया जा रहा है। इन वक्तव्यों और अखबारोंमें प्रकाशित इसी तरहके दूसरे वक्तव्योंके आधारपर आपने एक पत्र छापा। इन वक्तव्योंको आपने सही माना और साथ ही जनताको यह भी बताया कि इन लोगोंने स्थायी निवासके प्रमाणपत्र डर्बनमें प्राप्त कर लिये थे। डेलागोआ-बे से एक तार भेजा गया था। उसमें बताया गया था कि एक हजार स्वतन्त्र भारतीय वहाँ उतरे है और वे नेटाल जा रहे हैं। आजके 'मर्क्युरी' में इस आशयका एक तार छपा है कि सरकारने पुलिसको डेलागोआ-बे की ओरसे आनेवाले एशियाइयोंकी खोज करने का आदेश दिया है। यह सब एक नाटकीय चीज है, और अगर इसका मंशा यूरोपीय समाजके राग-द्वेषको भड़काना न होता तो यह अत्यन्त मनोरंजक भी होती। "मैन इन द मून" [चन्द्रवासी आदमी] ने अपने साप्ताहिक स्तम्भमें एक अंश लिखकर इसपर आखिरी मुलम्मा चढ़ाया है। उसका प्रहार सबसे निष्ठुर है, क्योंकि उसके लेखोंको न केवल जनता उत्सुकताके साथ पढ़ती है, बल्कि उनमें वजन भी होता है। जहाँ तक मैं जानता हूँ, यह दूसरा मौका है, जब कि उसने भारतीय प्रश्नके बारेमें सत्य-असत्यको पहचाननेकी शक्ति खोई है। अगर काफी उत्तेजना मिलनेपर भारतीयोंको कड़ी भाषा काममें लानेकी स्वतन्त्रता होती, तो ऐसी भाषाका प्रयोग उचित सिद्ध करने के लिए विचाराधीन विषयपर उस आदमी' के आजके लेखांशोंमें काफीसे ज्यादा उत्तेजना मौजूद है। मगर वैसा हो नहीं सकता। मुझे तो जो हकीकतें मैंने खुद देखी-सुनी हैं, उन्हें उसी रूप में जनताके सामने रखकर सन्तोष कर लेना होगा।

मुझे दो वकील भाइयोंके साथ डंडीके भारतीयोंकी पैरवी करने का अवसर मिला था। मैं पूरे जोरके साथ कहता हूँ कि अभियुक्त भारतीयोंमें से एक भी भारतसे नया आया हुआ नहीं था। इसके सबूत अब भी डंडीके प्रवास-अधिकारीके पास मौजूद हैं। इसे निर्णयात्मक रूपमें साबित कर देना सम्भव है कि वे सब भारतीय दक्षिण आफ्रिकामें या, यों कहिये कि, नेटालमें प्रवासी-कानून पास होनेके पहले आये थे। उनके परवाने, अन्य कागजपत्र और जहाजी कम्पनीके दफ्तरोंके लेखे झूठे नहीं हो सकते। सरकार और प्रदर्शन-समितिके बीचका पत्र-व्यवहार पत्रोंमें प्रकाशित होते ही मैंने उनमें से अधिकतर लोगोंको किसी अधिकारी अदालतके सामने पेश करने और उनकी निर्दोषता साबित कर देनेका प्रस्ताव किया था। अर्थात् मैं यह साबित करने को तैयार था कि वे सबके-सब पहले से ही नेटालके बाशिन्दे थे, इसलिए उन्हें उपनिवेशमें प्रवेश करने का पूरा अधिकार था। उनमें से एक व्यक्ति

  1. देखिए पृ॰ १६१–६२।