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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

फिलहाल डर्बनमें है। उसे जब कभी भी सरकार चाहे, मजिस्ट्रेटके सामने पेश किया जा सकता है।

यह कहना सच नहीं है कि इन लोगोंने अपने प्रमाणपत्र डर्बनमें प्राप्त किये थे। इनमें से कुछने, पारिभाषिक आधारपर बरी हो जाने के बाद, डंडीके मजिस्ट्रेटको स्थायी निवासके प्रमाणपत्रोंके लिए अर्जी दी थी। वह अर्जी नामंजूर कर दी गई। कागजात मेरे पास भेजे गये और मैंने सरकारसे प्रमाणपत्र पानेका प्रयत्न किया, परन्तु मैं असफल रहा। अब उनमें से अधिकतर लोग बिना प्रमाणपत्रोंके ट्रान्सवाल चले गये हैं। यह सच है कि डंडीके तीन लोगोंने डर्बनमें प्रमाणपत्र प्राप्त किये थे। जिन सबूतोंके आधारपर ये प्रमाणपत्र दिये गये थे, वे हलफनामे थे जो दफ्तरके कागजातमें नत्थी हैं। परन्तु डंडीवाले लोगोंके डर्बनमें प्रमाणपत्र प्राप्त करने और कानूनके खिलाफ प्रमाणपत्र प्राप्त करनेवालों के बीच तो आकाश-पातालका अन्तर है। अमजिमकूलूके एक आदमीने और, डर्बनके बाहर अन्य जिलोंके लोगोंने डर्बनमें ऐसे प्रमाणपत्र प्राप्त किये थे। ऐसे प्रमाणपत्र देने का आदेश निकलने के पहले श्री वाल्टरके सामने इस प्रश्नपर पूरी तरह से तर्क-वितर्क किया जा चुका था।

यह भय बिलकुल निराधार है कि जो भारतीय डेलागोआ-बे में उतरते हैं वे कानून तोड़कर उपनिवेशमें आ जाते हैं। मैं यह कहने की जिम्मेदारी तो नहीं लूंगा कि चार्ल्सटाउनके पास सीमाको पार करने का प्रयत्न एक भी नये व्यक्तिने नहीं किया; परन्तु जहाँतक मुझं मालम है, अबतक एक भी व्यक्ति चाल्सटाउनके स गृध्र-दृष्टिसे बचकर निकलने में सफल नहीं हुआ। कानूनके अमलमें आने के पहले और प्रदर्शन-समितिकी स्थापनाके समय, भारतीय समाजकी ओरसे खुलेआम कहा गया था कि हर माह जो भारतीय डर्बनमें उतरते हैं, उनमें से ज्यादातर ट्रान्सवाल जानेवाले मुसाफिर होते हैं। यह तो खास तौर से कहा गया था—और आजतक उस कथनका खंडन नहीं किया गया—कि 'कूरलैंड' और 'नादरी' जहाजोंसे जो ६०० यात्री आये थे उनमें १०० से कम नेटाल आनेवाले नये लोग थे। अब भी परिस्थिति बदली नहीं है। और मैं तो यह भी कहने का साहस करता हूँ कि जो १,००० यात्री डेलागोआ-बे में उतरे बताये जाते हैं, उनमें से भी ज्यादातर ट्रान्सवाल जानेवाले होंगे। विभिन्न राष्ट्रोंके नये लोगोंको भारी संख्यामें बसा लेनेका सामर्थ्य उसी उपनिवेशमें है। और जबतक ट्रान्सवाल भारतीयोंको लेता जाता है और सरकार उन्हें आने देती है, तबतक आप बड़ी तादादमें भारतीयोंको डेलागोआ-बे में आते देखते रहेंगे। मेरा कथन यह नहीं है कि उनमें से कोई नेटाल आना ही नहीं चाहता। कुछने तो पूछा था कि वे किन शर्तोंपर आ सकते हैं, और जब उनको बताया गया कि वे इन शर्तोंको पूरा नहीं कर सकते, तब वे ट्रान्सवालमें रह गये। वे कोई फरिश्ते तो नहीं है। अगर देख-रेख न हो तो कुछ लोग कानूनसे बचकर उपनिवेशमें आ भी सकते हैं।

मेरा मुद्दा यह है कि कानूनको तोड़ने की भारी पैमानेपर कोई कोशिश नहीं की जाती। "मैन इन द मून" ने अपनी उर्वर कल्पनाशक्तिसे जो भूत खड़ा किया है, उसके अनुसार न तो कोई संगठन है, न कानून तोड़ने और लुक-छिपकर उपनि