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पत्र : 'नेटाल मर्क्युरी' को

वेशमें घुस आने की सलाह ही दी जाती है। उचित आदरके साथ हमें कहना होगा कि प्रदर्शन-समितिसे उसका अनुरोध, अधिकारियोंको उसकी सलाह और उसके आक्षेप बहुत ही दुःखदायी हैं, क्योंकि वे गैरजरूरी हैं और वस्तुस्थितिसे साबित नहीं होते। उसका पद बहुत जिम्मेदारीका है। इसलिए लोगोंका यह खयाल होना स्वाभाविक है कि दूसरे कुछ भी करें, कमसे-कम वह तो सत्यके रूपमें किसी कल्पित बातका प्रचार करने के पहले ज्यादासे-ज्यादा सावधानी बरतेगा ही। शरारत एक बार शुरू हो गई तो फिर उसे रोकना शायद सम्भव न हो।

कानूनका अमल होनेपर डर्बनके जहाज-मालिकों को एक पत्र मिला था। उसमें उनसे अनुरोध किया गया था कि वे उसका अमल कराने में सरकारको सहयोग दें। मुझे मालूम है कि उन्होंने जवाबमें यह लिखा था कि हालाँकि हम उस कानूनको पसन्द नहीं करते, फिर भी जबतक वह कानूनकी किताबमें रहेगा तबतक हम यथाशक्ति तथा वफादारीके साथ उसे मानेंगे और उसके अमलमें सरकारको मदद करेंगे। और जहाँतक मुझे मालूम है, कोई जिम्मेदार भारतीय जहाज-मालिकोंके अपनाये हुए इस रुखके विरुद्ध नहीं गया। सच तो यह है कि जब-जब मौका आया, चाहे वह कांग्रेस-भवनके अन्दर रहा हो या बाहर, भारतीय समाजके नेताओंने भारतीयोंको सदा यही समझाने का प्रयत्न किया है कि कानूनकी अवज्ञा न करना आवश्यक है। दूसरी बात हो ही कैसे सकती थी? अगर कानूनको कभी भी रद कराना है तो ऐसा तो सिर्फ समझाने-बुझाने और भारतीयोंके अपना आचरण बिलकुल निष्कलंक रखने से ही हो सकता है। स्पष्टतः आँख चुरानेकी नीति तो आत्मघातक है। और मैं कह सकता हूँ कि भारतीय समाजके अतीत-जीवनका चिट्ठा इस विश्वासको सही साबित करनेवाला नहीं है कि वह कोई आत्मघातका कार्य कर सकता है। के बाद क्या "मन इन द मन" को यह विश्वास दिलाना जरूरी है कि भारतीयोंकी उपनिवेशके साथ खिलवाड़ करने की कोई इच्छा नहीं है, भले यह इसलिए ही क्यों न हो कि खिलवाड़ करना उनको पुसानेवाली चीज नहीं है?

फिर भी, पूरी-पूरी सार्वजनिक जाँच होने दीजिए। अगर यह साबित हो जाये कि कानूनकी अवज्ञा करनेवाले किसी संगठनका अस्तित्व है तो, बेशक, उसे कुचल दिया जाये। परन्तु, दूसरी ओर, अगर ऐसा कोई संगठन या 'व्यापक आक्रमण' पाया न जाये, तो इस बातको खुले आम स्वीकार किया जाये, जिससे संघर्षके कारण मिट जायें। सरकार तो ऐसा कर ही सकती है, परन्तु आप भी कर सकते हैं। इसके पहले समाचार-पत्रोंने अपने विशेष संवाददाताओंको भेजकर सार्वजनिक कार्योंकी जाँच कराई है। अगर आप सचमुच विश्वास करते हैं कि भारतीय समाजगत रूपमें कानूनसे बचने का प्रयत्न कर रहे हैं तो आप एक आरम्भिक जाँच करके भारतीय समाजको अत्यन्त आभारी बना लेंगे। और यह आपकी एक लोकसेवा होगी। इस जाँचका मंशा सरकारके लिए सार्वजनिक जाँच करने का मार्ग प्रशस्त करना और, वह जाँच करने के लिए ही तैयार न हो तो, उसे बाध्य करना होगा। कुछ भी हो, भारतीय अपनी ओरसे ऐसी जाँचका स्वागत करते हैं।