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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

३१ अक्तूबर : नागपुर होकर कलकत्ता पहुँचे। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा अन्य जन नेताओंसे मिले।

१२ नवम्बर : डर्बनसे दादा अब्दुल्लाका तार मिला, जिसमें गांधीजी से नेटाल वापस लौटने को कहा गया था, क्योंकि फोक्सराट (संसद) ने सिफारिश की थी कि भारतीयोंको पृथक् बस्तियोंमें रहने के लिए बाध्य किया जाये।

१३ नवम्बर : दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंकी समस्या पर 'इंग्लिशमैन' को पत्र लिखा।

१४ (१५?) नवम्बर : बम्बई पहुँचे।

१६ नवम्बर : पूनाकी सार्वजनिक सभामें भाषण दिया।

२० नवम्बर : बम्बई लौटे।

२६ नवम्बर : डर्बनके यूरोपीयोंकी हैरी स्पार्क्स की अध्यक्षतामें आम सभा जिसमें एशियाइयोंके आगमन और वासकी निन्दा की गई। गांधीजी के नाम का उल्लेख होने पर श्रोताओं द्वारा सिसकारी की परिहाससूचक आवाजें। औपनिवेशिक देशभक्त संघ (कलोनियल पेट्रिआटिक यूनियन) की स्थापना।

३० नवम्बर : गांधीजी ने वाइसरायके नाम कलकत्ता तार भेजकर उनका ध्यान ट्रान्सवाल-सरकारके इस निश्चयकी ओर आकर्षित किया कि भारतीयोंको पृथक् बस्तियोंमें रहने के लिए बाध्य किया जाये। धर्मपत्नी और दो पुत्रोंके साथ 'कूरलैंड' द्वारा बम्बईसे दक्षिण आफ्रिकाके लिए रवाना।

१८ दिसम्बर : 'कूरलैंड' और 'नादरी' जहाज भारतीय यात्रियोंको लेकर डर्बन पहुंचे।

१९ दिसम्बर : बम्बई प्रदेशके कुछ हिस्सोंमें प्लेग फैल गया है, इस आधार पर नेटाल सरकारने एक सूचना प्रकाशित करके बम्बई बन्दरगाहको संगित स्थान घोषित कर दिया। जहाजोंको पाँच दिनके लिए संक्रामक रोग-सम्बन्धी संगरोधमें रखा गया और यह अवधि थोड़ी-थोड़ी करके ११ जनवरी तक बढ़ाई गई।

२५ दिसम्बर : गांधीजी ने सहयात्रियोंकी क्रिसमस-दिवस सभामें पाश्चात्य सभ्यतापर पर व्याख्यान दिया। बादमें नेटालके समाचार-पत्रोंने उनपर "नेटालके गोरोंकी जोरदार निन्दा करने" और "नेटालको भारतीयोंसे पूर देनेकी इच्छा" का आरोप लगाया।

२९ दिसम्बर : डर्बनके यूरोपीयोंने ४ जनवरीको एक सभा करने का ऐलान किया, जिसमें जहाजोंसे उतरने पर भारतीय यात्रियोंके विरोधमें प्रदर्शन करने की योजना बनानी थी। समाचार-पत्र 'एशियाइयों का हमला' की कहानी से भरे हुए थे।

३१ दिसम्बर : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके कलकत्ता-अधिवेशनमें गांधीजी की सलाहकेक्षअनुसार नेटाल भारतीय कांग्रेसके प्रतिनिधि श्री जी॰ पी॰ पिल्ले द्वारा पेश