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तारीखवार जीवन-वृतान्त



किया गया प्रस्ताव पास किया गया जिसमें दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंपर थोपी गई निर्योग्यताओंपर रोष प्रकट किया गया था और सरकारसे उन्हें दूर करवाने के लिए आवश्यक कदम उठाने का अनुरोध किया गया था।

१८९७

२ जनवरी : 'नेटाल एडवर्टाइज़र' में एक पत्र प्रकाशित, जिसमें गांधीजी तथा उनके मित्रोंका डर्बनमें उतरने पर "उपयुक्त स्वागत" करने की कार्रवाइयोंका समर्थन किया गया था।

१३ जनवरी : गांधीजी द्वारा 'कू रलैंड' जहाजपर 'नेटाल एडवर्टाज़र' के प्रतिनिधिको भेट। शामको ५ बजे जहाजसे उतरे और डर्बनकी भीड़ द्वारा उनपर हमला, परन्तु पुलिस-सुपरिटेंडेंटकी पत्नी श्रीमती अलेक्जेंडरके बीचमें पड़ने के कारण घातक प्रहारोंसे बच गये। बादमें पारसी रुस्तमजीके मकानमें घेर लिये गये; परन्तु पुलिस-सुपरिटेंडेंट अलेक्ज़ेंडर उन्हें निकाल ले गये।

१४ जनवरी : नेटाल-सरकारने घटनाकी रिपोर्ट उपनिवेश-मन्त्रीको भेजी और गांधीजी पर दोषारोपण किया कि वे बेमौके और बुरी सलाह मानकर जहाजसे उतरे।

२० जनवरी : महान्यायवादीके भेंट करने पर गांधीजी ने हमलावरोंपर मुकदमा चलवाने से इन्कार कर दिया और लिखित रूपमें अपनी यह इच्छा व्यक्त कर दी कि मामलेको नजरअन्दाज कर दिया जाये।

२२ जनवरी : भीड़ द्वारा आक्रमणके समय श्री और श्रीमती अलेक्ज़ैडरने जो मदद की थी, उसके लिए उन दोनोंको व्यक्तिगत रूपसे धन्यवादके पत्र लिखे और भेटें भेजी।

२८ जनवरी : दादाभाई नौरोजी, हंटर और भावनगरीको तार भेजकर जहाजसे उतरते समय घटी घटनाओंकी सूचना दी।

२९ जनवरी : तारकी पुष्टि करते हुए उन्हें पत्र लिखे और सविस्तार समाचार दिये। २, ३, ४ फरवरी : अखबारोंमें पत्र लिखकर भारतीय अकाल-पीड़ित सहायता कोषके लिए चन्देकी अपील की और उसी प्रयोजनसे हिन्दी, अंग्रेजी तथा कुछ अन्य भारतीय भाषाओंमें लोगोंको परिपत्र भेजे।

६ फरवरी : डर्बनके धर्मोपदेशकोंसे अकाल-पीड़ितोंकी सहायताके लिए लोगोंका सहयोग प्राप्त करने की अपील की।

२ मार्च : नेटालके मन्त्रियोंने गवर्नरको सूचित किया कि गांधीजी की चोटें गम्भीर नहीं थीं और "उनकी इच्छाके अनुसार, शांति-भंग किये जानेके सम्बन्धमें कोई कार्रवाई नहीं की गई।"

१५ मार्च : भारतीय-विरोधी प्रदर्शन तथा उसके बादकी घटनाओंके बारेमें श्री चेम्बरलेनके नाम प्रार्थनापत्र पूर्ण किया।

२६ मार्च : नेटालकी विधान-निर्मात्री सभाओंके विचाराधीन भारतीय विरोधी विधेयकोंके सम्बन्धम उन सभाओंको प्रार्थनापत्र दिये।