पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७
दक्षिण अफ्रीकावासी ब्रिटिश भारतीयोंकी कष्ट-गाथा

भारत-सरकारने अनिवार्य शर्तबन्दीका सिद्धांत स्वीकार कर लिया है। तथापि हमें दृढ़ विश्वास है कि ब्रिटेन और भारतकी सरकारोंको दिये गये प्रार्थनापत्रोंमें[१] जो हकीकतें बताई गई हैं, वे भारत-सरकारको अपना विचार बदलने की प्रेरणा देने के लिए काफी होंगी।

यद्यपि हमने खासकर उन भारतीय मजदूरोपर असर करनेवाली बातोंके बारेमें कोई आवाज नहीं उठाई जो अभी इकरारनामेकी अवधि काट ही रहे हैं, तथापि यह बखूबी माना जा सकता है कि जायदादोंमें उनकी हालत कुछ खास आरामदेह नहीं है। हम समझते हैं कि साधारण आबादीके सम्बन्धमें उपनिवेशके रुखमें परिवर्तन होनेका असर गिरमिटिया भारतीयोंके मालिकोंपर भी पड़ेगा। फिर भी एक-दो बातें खास तौरसे भारतीय जनताकी नजरमें लानेके लिए मुझसे कहा गया है। अबसे काफी पहले, सन १८९१ में, श्री हाजी मोहम्मद हाजी दादाकी अध्यक्षताम एक भारतीय कमेटीने एक प्रार्थनापत्र दिया था। उसमें एक माँग यह की गई थी कि प्रवासियोंका संरक्षक कोई ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो तमिल और हिन्दुस्तानी भाषाएँ जानता और सम्भव हो तो वह भारतीय ही होना चाहिए। हम उस स्थितिसे पीछे नहीं हटे और जो समय बीचमें बीता उसमें हमारा वह मत और भी पक्का हआ है। वर्तमान संरक्षक एक सज्जन पुरुष हैं। फिर भी उनका भारतीय भाषाओंका अज्ञान एक गम्भीर कमी तो है ही। हमारा नम्र खयाल यह भी है कि संरक्षकको निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह प्रवासियों और उनके मालिकोंके बीच निर्णायकको हैसियतसे काम करने की अपेक्षा भारतीयोंके हिमायतीके रूपमें अधिक काम करे। मैं उदाहरण देकर अपनी बात समझा दूँ। १८९४ में बालसुन्दरम् नामक एक भारतीयको उसके मालिकने ऐसा मारा-पीटा कि उसके दो दाँत करीब-करीब निकल गये। वे उसके ऊपरी होठमें घुसकर बाहर निकल आये, जिससे इतना खून गया कि उसकी लम्बी पगड़ी तर हो गई। उसके मालिकने हकीकतको मंजूर कर लिया, परन्तु यह कहा कि उस आदमीने उसे अत्यधिक उत्तेजित कर दिया था। उस आदमीने उत्तेजित करने का आरोप नामंजूर किया। मार खाकर, मालूम होता है, वह संरक्षकके मकानपर गया, जो उसके मालिकके मकानके पास ही था। संरक्षकने खबर भेज दी कि वह दूसरे दिन दफ्तरमें आये।

तब वह आदमी मजिस्ट्रेटके पास गया। मजिस्ट्रेटको सारा दृश्य देखकर बहुत दया आई। उसने पगड़ी अदालतमें रखवा ली और उसे इलाजके लिए तुरन्त अस्पताल भिजवा दिया। कुछ दिन अस्पतालमें रहने के बाद उसे वहाँसे रुखसत कर दिया गया। उसने मेरे बारेमें सुना था, इसलिए वह मेरे दफ्तरमें आया। अबतक वह इतना स्वस्थ नहीं हुआ था कि कुछ बातचीत कर सकता। इसलिए मैंने उससे तमिल में—जो वह जानता था—अपनी शिकायत लिख देनेको कहा। वह मालिकपर मुकदमा चलाना चाहता था, ताकि उसका मंजदूरीका इकरारनामा रद कर दिया जाये। मैंने

  1. भारत-सरकारको दिये गये प्रर्थनापत्रोंके लिए देखिए खण्ड १, पृ॰ २५२–५४।

२-२