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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

उससे पूछा कि अगर तुम्हारा किसी दूसरे मालिकके पास तबादला कर दिया जाये तो क्या तुम सन्तुष्ट हो जाओगे? उसने संकेतसे हामी भर दी। इसपर मैंने उसके। मालिकको एक पत्र लिखकर पूछा कि क्या वह उस व्यक्तिका दूसरे मालिकके पास तबादला कर देना मंजूर करेगा? उसने पहले तो अनिच्छा बताई, मगर बादमें वह राजी हो गया। मैंने उस आदमीको संरक्षकके दफ्तरमें भेजा। साथमें अपने एक तमिल मुंशीको भेज दिया, जिसने संरक्षकको उसकी बातें समझा दीं। संरक्षकने चाहा कि उस आदमीको उनके दफ्तरमें छोड दिया जाये। उन्होंने खबर भेजी कि अपनी शक्ति-मर जो-कुछ वे कर सकेंगे, अवश्य करेंगे। इसी बीच मालिक संरक्षकके दफ्तरमें पहुँचा। उसने अपना विचार बदल दिया और कहा कि उसकी पत्नी तबादला करना स्वीकार नहीं करती, क्योंकि उसकी सेवाएं बहुत ही मूल्यवान हैं। कहा जाता है कि इसपर उस आदमीने समझौता करके संरक्षकको एक लिखित बयान दे दिया कि उसे कोई शिकायत नहीं करनी है। संरक्षकने मुझे पत्र लिख भेजा कि चूंकि उस आदमीको कोई शिकायत नहीं है और मालिकने उसकी सेवाओंकी अदला-बदली करना स्वीकार नहीं किया है, इसलिए मैं इस मामलेमें हस्तक्षेप नहीं करूँगा। मैं पूछता हूँ, क्या यह ठीक था? क्या संरक्षकका उस आदमीसे इस प्रकारका लिखित वक्तव्य लेना उचित था? क्या वे उस आदमीसे स्वयं अपनी रक्षा करना चाहते थे? परन्तु मैं वह दर्दभरी कहानी आगे सुनाऊँ। स्वाभाविक था कि संरक्षकके पत्रने मुझे गहरा धक्का पहुँचाया। मैं उस धक्के से उबरा भी नहीं था कि वह आदमी रोता-बिलखता मेरे दफ्तरमें आ पहुँचा और उसने कहा कि संरक्षक उसका तबादला नहीं करता। म, अक्षरशः, संरक्षकके दफ्तरको दौड़ा और मैंने दरियाफ्त किया कि मामला क्या है। संरक्षकने वह लिखा हुआ कागज मेरे सामने रख दिया और पूछा कि मैं कैसे उस आदमीकी मदद कर सकता हूँ? उन्होंने कहा कि उस आदमीको इस कागजपर दस्तखत नहीं करने चाहिए थे। और यह कागज एक हलफनामा था, जिसे स्वयं संरक्षकने प्रमाणित किया था। मैंने संरक्षकसे कहा कि मैं उस आदमीको सलाह दूँगा कि वह मजिस्ट्रेटके पास जाकर शिकायत करे। उन्होंने उत्तर दिया कि यह कागज मजिस्ट्रेटके सामने पेश कर दिया जायेगा और शिकायत व्यर्थ हो जायेगी। कारण बताकर उन्होंने मुझे सलाह दी कि मामलेको अब छोड़ दिया जाये। मैं अपने दफ्तरमें वापस चला आया और मैंने उस आदमीके मालिकको तबादला मंजूर कर लेनेकी प्रार्थना करते हए एक पत्र लिखा। मालिक वैसा कुछ भी करने को तैयार नहीं था। मजिस्ट्रेटने हमारे साथ बिलकुल दूसरा ही व्यवहार किया। उसने उस आदमीको उस समय देखा था जबकि उसके होठोंसे खून बह ही रहा था। फरियाद बाकायदा कर दी गई। सुनवाईके दिन मैंने सारी परिस्थितियाँ बताई और खुली अदालतमें फिर मालिकसे अपील की और वादा किया कि अगर वह तबादला करने के लिए राजी हो तो हम मुकदमा उठा लेंगे। इसपर मजिस्ट्रेटने मालिकको चेतावनी दी कि अगर उसने मेरे प्रस्तावपर ज्यादा अनुकूल विचार नहीं किया तो परिणाम उसके लिए गम्भीर हो सकता है। मजिस्ट्रेटने यह भी कहा कि, उसका खयाल है,