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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

है, तो स्वाभाविक अनुमान यह होगा कि कहीं-न-कहीं कुछ गड़बड़ी जरूर है। और शनिवारको जब श्री डिलन कामसे इनकार करने के एक ही अपराध तीन कुलियोंके मुकदमेकी सुनवाई कर रहे थे, उस समय उन्होंने जो-कुछ कहा था उससे हमें आश्चर्य नहीं है। तीनों अभियुक्तोंने यह एक ही जवाब दिया था कि हमारे मालिकोंने हमारे साथ बुरा बरताव किया है। बेशक, यह सम्भव है कि ये खास कुली बगीचोंके कामसे जेलके कामको अधिक पसन्द करते हों। दूसरी ओर, यह भी सम्भव है कि कुलियोंके पास अपने प्रति व्यवहारके सम्बन्ध में शिकायतोंका कोई आधार मौजूद हो। यह विषय ऐसा है, जिसकी जाँच होनी चाहिए और, कमसे-कम, ऐसी शिकायतें करनेवाले लोगोंका दूसरे मालिकोंके तबादला कर देना चाहिए। अगर वे फिर भी काम करने से इनकार करें तो फौरन पता चल सकेगा कि वे काम करना नहीं चाहते। कहा भले ही जाये कि किसी कुलीके साथ दुर्व्यवहार हो तो वह मजिस्ट्रेटके सामने फरियाद कर सकता है, परन्तु ऐसे मामलोंको साबित करना किसी कुलीके लिए सरल नहीं है। यह तो प्रवासियोंके संरक्षकका काम है कि वह शिकायतोंकी जाँच और, अगर सम्भव हो तो, उनका इलाज करे।

भारतीय मजदूरोंके मालिकोंका एक प्रवास न्यास-मंडल है। उसे अब बहुत व्यापक अधिकार प्राप्त हो गये हैं। और उसके सदस्योंकी हैसियतको देखते हुए उसके कार्यों पर भारत-सरकारको बड़ी सतर्कताके साथ चौकसी रखनी होगी। काम छोड़कर भागने की सजा अभी ही बहुत भारी है, फिर भी लोग गम्भीरताके साथ सोच रहे हैं कि क्या ऐसे मामलोंके निबटारेके लिए कोई ज्यादा कड़ा तरीका नहीं निकला जा सकता। तिसपर, यह याद रखना चाहिए कि १० में से कमसे-कम ९ मामलोंमें तथाकथित भगोड़े दुर्व्यवहारकी शिकायत करते हैं। ऐसे भगोड़े सजा पानेसे कानूनन संरक्षित है, परन्तु चूंकि वे बेचारे अपनी शिकायतोंको साबित नहीं कर सकते, इसलिए उन्हें सच्चे भगोड़े माना जाता है और इसीके अनुसार संरक्षक उन्हें मजिस्ट्रेटके पास दण्डके लिए भेज देता है। ऐसी परिस्थितियोंमें, हमारा निवेदन है, कार्य-त्याग-सम्बन्धी कानूनमें कोई भी ऐसा परिवर्तन करने के पहले, जो उसे ज्यादा खराब बनानेवाला हो, सावधानीसे विचार करना आवश्यक है।

उनमें से कुछ लोग आत्महत्या करके जिन्दगीसे छुटकारा पा लेते हैं। ये मृत्युएँ बड़ी शोचनीय हैं। इनकी कोई सन्तोषजनक कैफियत नहीं दी जाती। इस बारेमें सबसे अच्छा यही होगा कि मैं १५ मई, १८९६ के 'एडवर्टाइज़र से निम्नलिखित उद्धरण दे दूँ:

प्रवासी-संरक्षकके वार्षिक विवरणके एक पहलूपर अभी आम तौरपर जितना ध्यान दिया जाता है, उससे ज्यादा दिया जाना जरूरी है। वह पहलू है जायदादोंमें हर साल होनेवाली कुलियोंकी आत्महत्याओंका। इस वर्ष कुल ८, ८२८