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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

चाहिए। दूसरी ओर, साधारण भारतीय के लिए नकल पाना उतना ही आसान होना चाहिए, जितना कि असलको पाना। उनसे अपने परवाने अपने साथ रखने की अपेक्षा की जाती है। फिर अगर वे अक्सर खो जाते है तो इसमें क्या आश्चर्य? मैं एक आदमीको जानता हूँ, जो इसलिए नकल नहीं पा सका कि उसके पास ३ पौंड नहीं थे। वह जोहानिसबर्ग जाना चाहता था परन्तु जा नहीं सका। संरक्षकके विभागमें ऐसे मामलोंमें अस्थायी परवाना दे देनेकी प्रथा प्रचलित है। इसमें शर्त यह होती कि परवाना लेनेवाला अपनी कमाईसे सबसे पहले संरक्षकके कार्यालयके तीन पौंड चुका दे। जिस मामलेकी चर्चा मैं कर रहा हूँ उसमें उस आदमीको ६ महीने के लिए अस्थायी परवाना दे दिया गया था। इतने समयमें वह ३ पौंड नहीं कमा सका। इस तरह के मामले दर्जनों है। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि तीन पौंड वसूल करने की यह प्रणाली अनुचित दबाव डालकर रुपया ऐंठनेकी प्रणालीके अलावा कुछ नहीं है।

जूलूलैंड

ब्रिटिश सम्राज्ञीके शासनाधीन उपनिवेश—जूलूलैंडके कुछ कस्बोंमें जमीनकी बिक्रीके नियम प्रकाशित किये गये हैं। यद्यपि उसी उपनिवेशके मेलमॉथ नामक कस्बेमें भारतीयोंके पास लगभग २,००० पौंडकी जमीन है, एशोवे और नोन्दवेनी नामक कस्बोंमें नियम उनके ज़मीन खरीदने या उसपर स्वामित्व रखने[१] पर प्रतिबन्ध लगानेवाले हैं। हमने श्री चेम्बरलेनको प्रार्थनापत्र[२] भेजा है और अभी वह उनके विचाराधीन है। नेटालके उपनिवेशियोंका कथन है कि अगर सम्राज्ञीके शासनाधीन उपनिवेशमें भारतीयोंपर ऐसे प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं तो फिर नेटाल-जैसे उत्तरदायी शासनके उपनिवेशको भी उनके साथ स्वेच्छानुसार व्यवहार करने का अधिकार होना चाहिए। जूलूलैंडमें हमारी स्थिति फ्री स्टेटसे बेहतर नहीं है। जूलूलैंड जाना इतना खतरेका है कि जिन एक-दो लोगोंने वहाँ जानेका साहस किया, उन्हें लौट आना पड़ा। वहाँ भारतीयोंके लिए कमाईके अच्छे साधन है, परन्तु दुर्व्यवहार आड़े आता है। हमें आशा है कि इस कठिनाईको दूर करने में अधिक विलम्ब न किया जायेगा।

केप कॉलोनी

केप कॉलोनीमें मेयरोंकी कांग्रेसने एक प्रस्ताव पास करके यह इच्छा व्यक्त की है कि वहाँ एशियाइयोंकी बाढ़को रोकने के लिए कानून बनाया जाये। उसने आशा की है कि कार्रवाई तुरन्त की जायेगी। उधर, केप-विधानमण्डलने भी हाल ही में एक कानून पास किया है। वह उस उपनिवेशके एक शहर ईस्ट लन्दनकी म्युनिसिपैलिटीको अधिकार देता है कि वह कुछ ऐसे उपनियम बना ले, जिनसे आदिवासियों और भारतीयोंको कुछ खास बस्तियोंमें हट जाने और वहीं निवास करने के लिए

  1. देखिए खण्ड १, पृ॰ ३०७–१४।
  2. देखिए खण्ड १, पृ॰ ३१६–१९।