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दक्षिण अफ्रीकावासी ब्रिटिश भारतीयोंकी कष्ट-गाथा

बाध्य किया जा सकें और उन्हें पैदल-पटरियोंपर चलने से भी रोका जा सके। क्रूरतापूर्ण उत्पीड़नके इससे अधिक उपयुक्त उदाहरणकी कल्पना करना कठिन है। २३ मार्च, १८९६ के 'मर्क्युरी' के अनुसार, केप-सरकारके अधीन ईस्ट ग्रिक्वालैंडमें भारतीयोंकी स्थिति इस प्रकार है :

इस्माइल सुलेमान नामक एक अरबने ईस्ट ग्रिक्वालैंडमें एक वस्तु-भंडार बनवाया। उसने अपने मालपर तट-कर अदा कर दिया और परवानेके लिए अजी दी, जिसे मजिस्ट्रेटने नामंजूर कर दिया। श्री अटर्नी फ्रान्सिसने उस अरबकी ओरसे केप-सरकारके सामने अपील की। परन्तु केप-सरकारने मजिस्ट्रेटका फैसला बहाल रखा और निर्देश दिया कि ईस्ट ग्रिक्वालैंडमें किसी अरब या कुलीको व्यापार करने का परवाना न दिया जाये और जिन एक-दो लोगोंके पास परवाने हैं, उनका कारबार बन्द करा दिया जाये।

इस प्रकार दक्षिण आफ्रिकामें सम्राज्ञी-सरकारके शासनाधीन कुछ हिस्सोंमें उसकी भारतीय प्रजाके निहित स्वार्थ भी संरक्षणकी वस्तु नहीं हैं। उस भारतीयका आखिर क्या हुआ, मैं पक्की तरहसे जान नहीं सका। परन्तु ऐसे मामले अनेक हैं, जिनमें भारतीयोंको व्यापारके परवाने देनेसे बिना किसी शिष्टाचारके इनकार कर दिया गया है। नेटालमें आदिवासियोंके मामलोंपर एक सरकारी विवरण प्रकाशित हुआ है। उसमें एक मजिस्ट्रेटने कहा है कि वह भारतीयोंको व्यापारके परवाने देनेसे सीधे-सीधे इनकार कर देता है और इस प्रकार उनके अनधिकार प्रवेशको रोकता है।

चार्टर्ड टेरिटरीज़

चार्टर्ड टेरिटरीज़में भी भारतीयोंके साथ यही व्यवहार हो रहा है। हाल ही की बात है, एक भारतीयको व्यापारका परवाना देनेसे इनकार कर दिया गया था। उसने सर्वोच्च न्यायालयमें फरियाद की और न्यायालयने फैसला दिया कि उसे परवाना देनेसे इनकार नहीं किया जा सकता। अब रोडेशियाके लोगोंने सरकारको एक प्रार्थनापत्र भेजकर अनुरोध किया है कि कानूनमें ऐसा परिवर्तन कर दिया जाये जिससे भारतीयोंका परवाने पाना कानूनन रोका जा सके। कहा जाता है कि सरकारका रुख उनकी प्रार्थना स्वीकार करने के अनुकूल है। जिस सभा द्वारा प्रार्थना-पत्र भेजा गया है उसके बारेमें दक्षिण आफ्रिकी 'डेली टेलिग्राफ' के संवाददाताका कथन है :

वह सभा किसी भी रूपमें प्रातिनिधिक नहीं थी—यह मैं कह सकता हूँ, और सचाईके साथ कह सकता हूँ—इसकी मुझे खुशी है। अगर वह प्रातिनिधिक होती भी तो उससे शहरके निवासियोंकी कोई प्रशंसा न होती। उसमें कोई आधा दर्जन प्रमुख वस्तु-भंडार-मालिक, एक पत्र-सम्पादक, इक्केदुक्के छोटे सरकारी कर्मचारी और काफी बड़ी संख्यामें सोने-चाँदीकी खाने खोजनेवाले, मिस्तरी और कारीगर शामिल थे। जिन्होंने सभाका आयोजन किया था, वे तो हमें यही बताना पसन्द करेंगे कि ये ही सैलिसबरीके लोकमतके