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दक्षिण अफ्रीकावासी ब्रिटिश भारतीयोंकी कष्ट-गाथा

गैर-जरूरी माना। फिर भी वे घोड़ागाड़ी तो चूक ही गये और उन्हें फ़ोक्सरस्टसे चार्ल्सटाउन तक पैदल जाना पड़ा।


प्रिटोरिया और जोहानिसबर्गमें भारतीय अधिकारपूर्वक पैदल-पटरियोंपर नहीं। मैं 'अधिकारपर्वक' शब्दका प्रयोग सोच-समझकर कर रहा है, क्योंकि साधारणतः व्यापारियोंके साथ छेड़छाड़ नहीं की जाती। जोहानिसबर्गमें तो सफाईबोर्डका ऐसा एक उपनियम भी है। प्रिटोरिया में श्री पिल्लै नामक एक सज्जनको, जो मद्रास विश्वविद्यालयके स्नातक हैं, धक्के देकर पटरीसे बाहर कर दिया गया था। उन्होंने इस बारेमें अखबारोंमें लिखा था। ब्रिटिश एजेंटका ध्यान भी इसकी ओर खींचा गया। परन्तु यद्यपि ब्रिटिश एजेंट भारतीयोंके प्रति सहानुभूति रखते थे, उन्होंने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

जोहानिसबर्गके सोना-खान-कानूनोंके अनुसार भारतीय लोग खान चलाने के परवाने नहीं पा सकते। और उनका देशी सोना रखना या बेचना भी अपराध माना जाता है।

ब्रिटिश प्रजाको सैनिक-भरतीसे मुक्त रखने की सन्धि ट्रान्सवाल-सरकारने इस शर्त पर स्वीकार की है कि उसमें 'ब्रिटिश प्रजा' का अर्थ केवल 'गोरे लोग' होगा। इस विषयपर अब श्री चेम्बरलेनको एक प्रार्थनापत्र[१] भेजा गया है। इस व्याख्याके अनुसार, सम्राज्ञीकी भारतीय प्रजापर जो निर्योग्यताएँ मेढ़ी गई है उनके अलावा, जैसाकि लन्दन 'टाइम्स' ने कहा है, शायद हमें "ब्रिटिश भारतीय प्रजाजनोंकी सेनाको ट्रान्सवालकी संगीनोंसे ब्रिटिश सेनाकी संगीनोंपर खदेड़े जाते देखना होगा।"

ऑरेंज फ्री स्टेट

ऑरेंज फ्री स्टेटने, जैसाकि मैं एक अखबारसे उद्धृत कर चुका हूँ, ब्रिटिश भारतीयोंका वहाँ रहना असम्भव कर दिया है। हमें उस राज्यसे खदेड़ दिया गया है और इससे हमारा ९,००० पौंडका नुकसान हुआ है। हमारे वस्तु-भंडार बन्द कर दिये गये हैं और हमें उनका कोई मुआवजा नहीं दिया गया। इस मामलेसे विशेष सम्बद्ध भारतीय व्यापारियोंकी भावी उन्नतिकी आशाओंपर जो पाला पड़ गया, उसकी तो बात ही अलग, परन्तु क्या श्री चेम्बरलेन हमारी इतनी शिकायत भी सच्ची मानेंगे और ऑरेंज फ्री स्टेटसे हमारे ९,००० पौंड दिलवा देंगे? मैं उन सब व्यापारियों को जानता हूँ। उनमें से अधिकतर खदेड़े जानेके पहले धनिकतम व्यापारी माने जाते थे और वे फिरसे अपनी पहलेकी हालतमें पहुँच नहीं सके। जिस कानूनके अन्तर्गत भारतीयोंको खदेड़ा गया है, उसे "एशियाई गैर-गोरोंकी बाढ़ रोकने का कानून" कहा जाता है। उसके अनुसार कोई भी भारतीय ऑरेंज फ्री स्टेटमें दो महीनेसे ज्यादा नहीं रह सकता। अगर कोई ज्यादा रहना चाहता है तो उसके लिए गणराज्यके अध्यक्षकी अनुमति लेना जरूरी है। और उसकी अर्जीपर उसके दिये जानेकी तारीखसे ३० दिनके अन्दर, और अन्य औपचारिक कार्रवाइयाँ हो जानेके पहले, विचार नहीं

  1. देखिए खण्ड १, पृ॰ २७४–७५।