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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यूरोपीय, बेशक, ज्यादा अच्छे ढंगसे रहता है और उसे भोजनके साथ कुछ शराबकी भी जरूरत होती है और हमारा भारतीय तो सिर्फ पानी ही पीता है। हम इन आरोपों को बिलकुल अस्वीकार करते हैं कि हम कुछ खर्च नहीं करते और हम उन आरोप लगानेवालों से ज्यादा चरित्रहीन है। परन्तु सही कारण है, पहले तो व्यापारिक ईर्ष्या और दूसरे, भारत और भारतीयोंके बारेमें अज्ञान।

भारतीयोंके विरुद्ध चीख-पुकार सबसे पहले व्यापारियोंने शुरू की थी। बादमें साधारण जनता भी उसमें शामिल हो गई और अन्ततः वह ऊँच-नीच सबमें व्याप्त हो गई। यह दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयों-सम्बन्धी कानूनोंसे स्पष्ट है। ऑरेंज फ्री स्टेटवालों ने तो साफ कहा है कि वे एशियाइयोंसे इसलिए द्वेष करते हैं कि वे सफल व्यापारी हैं। आन्दोलन, सबसे पहले, विभिन्न राज्योंके व्यापार-मंडलोंने शुरू किया था। वे यह कहते फिरते थे कि हम भारतीय लोग ईसाइयोंको अपना स्वाभाविक शिकार और अपनी स्त्रियोंको आत्मारहित मानते हैं और हम कोढ़, उपदंश आदि बीमारियाँ फैलानेवाले हैं। अब स्थिति यहाँतक पहुँच गई है कि किसी अच्छे ईसाईके लिए एशियाइयोंके उत्पीड़नमें कोई अन्याय न देखना वैसा ही स्वाभाविक बन गया है, जैसा कि पुराने जमाने के प्रामाणिक ईसाइयोंका गुलाम-प्रथामें कोई गलती या गैर-ईसाइयत न देखना था। श्री हेनरी बेल नेटाल-विधानसभाके एक सदस्य हैं। वे एक ठेठ अंग्रेज हैं। उन्हें "सदसदि् विवेकी बेल" कहकर पुकारा जाता है, क्योंकि वे एक धर्मान्तरित ईसाई है और धार्मिक आन्दोलनोंमें प्रमुख भाग लेते हैं तथा विधानसभामें अक्सर अपनी अन्तरात्माकी दुहाई दिया करते है। फिर भी ये सज्जन भारतीयोंके अत्यन्त प्रबल और कट्टर विरोधी है। ये अपना प्रमाणपत्र देते हैं कि उन लोगोंपर, जो उपनिवेशके मुख्य अवलम्ब रहे हैं, तीन पौंड प्रति-जन वार्षिक कर लगाना और उन्हें अनिवार्य रूपसे वापस भेज देना न्यायपूर्ण और भूत-दयात्मक कार्य है।

दक्षिण आफ्रिकामें हमारा तरीका इस द्वेषको प्रेमसे जीतने का है। कमसे-कम हमारा लक्ष्य तो यह है ही। हम बहुधा इस आदर्शमें ओछे उतरेंगे, परन्तु अगणित उदाहरणोंसे हम बता सकते है कि हमने आचरण इसी भावनासे किया है। हम व्यक्तियोंको दण्ड दिलाने का प्रयत्न नहीं करते। साधारणतः उनके अन्याय धैर्यपूर्वक सह लेते हैं। आम तौरपर हमारी प्रार्थनाएँ भूतकालकी क्षतियोंके मुआवजेके लिए नहीं होतीं, बल्कि इसलिए होती है कि भविष्यमें उनकी पुनरावृत्ति न होने दी जाये और उनके कारणोंको दूर कर दिया जाये। भारतीय जनताके सामने मी हमने अपनी शिकायतें उसी भावनासे रखी हैं। अगर हमने व्यक्तिगत कष्टोंके उदाहरण दिये हैं तो उसमें हमारा उद्देश्य मुआवजा माँगना नहीं, भारतीय जनताके सामने अपनी स्थितिको स्पष्ट रूपसे पेश कर देना है। हम कोशिश कर रहे हैं कि अगर इस तरहके व्यवहारके कोई कारण हमारे अन्दर हों तो हम उन्हें दूर कर दें। परन्तु भारतके लोकनिष्ठ व्यक्तियोंकी सहानुभूति तथा सहायता और भारत तथा ब्रिटेनकी सरकारोंकी जोरदार लिखा-पढ़ीके बिना हम सफल नहीं हो सकते। दक्षिण आफ्रिकामें भारत-सम्बन्धी अज्ञान इतना बड़ा है कि अगर हम कहें, भारत जहाँ-तहाँ