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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

उत्सुक क्यों न हों, जो लोग सब पहलुओंका खयाल रखते हुए इसका अध्ययन करना चाहते हैं (और यही एक तरीका है जिससे सही और लाभप्रद निर्णय किया जा सकता है), उन सबके सामने स्पष्ट होना चाहिए कि व्यापकतर अथवा साम्राज्य-सम्बन्धी बातोंका विचार करना भी जरूरी है। और फिर, जहाँतक मामलेके शुद्ध स्थानिक पहलूका सम्बन्ध है, यह जान लेना उतना ही जरूरी और शायद उतना ही कठिन भी है कि, स्थितिपर व्यापक दृष्टिकोणसे विचार किया जा रहा है, या सिर्फ उन तथ्योंको ही स्वीकार करके किसी पक्षमें कच्चे मत बनाये जा रहे हैं, जो स्वार्थ अथवा द्वेषभावके कारण स्वीकार करने योग्य मालूम होते हैं। भारतीयोंके आगमनके सम्बन्धमें सारे दक्षिण आफ्रिकाका आम खयाल संक्षेपमें यह बताया जा सकता है कि "हमें उनकी जरूरत नहीं है।

गुण-दोषोंकी छानबीन करने के लिए पहला मुद्दा यह है कि ब्रिटिश साम्राज्यमें शामिल रहने पर हमें इस सम्बन्धसे पैदा होनेवाली सब अच्छाइयों और बुराइयोंको मंजूर करना है। शर्त, बेशक, यह है कि वे अच्छाइयाँ-बुराइयाँ उस सम्बन्ध में अविच्छेद्य हों। अब, जहाँतक भारतीय आबादीके भविष्यको बात है, यह माना जा सकता है कि साम्राज्यको सरकार साम्राज्यके किसी भी देशमें ऐसा कोई कानून बनाने की अनुमति राजी-खुशीसे न देगी, जिसका उद्देश्य साम्राज्यके किसी भी भागसे भारतीयोंकी जायद आबादीको दूर रखना हो। दूसरे शब्दोंमें, अगर कोई खास राज्य इस सिद्धान्तका कोई कानून बनाना चाहे कि भारतकी शीघ्रतासे बढ़ती हुई कोटि-कोटि जनसंख्याको भारतमें ही रखा जाये और आखिर वहीं उसका दम घुटे, तो ब्रिटिश सरकार इसके लिए आसानी से अनुमति न देगी। इसके विपरीत, ब्रिटिश सरकार चाहती है कि भारतमें इस तरहकी भीड़की सम्भावनाको दूर किया जाये और भारतको ब्रिटिश साम्राज्यका एक खतरनाक तथा असन्तुष्ट भाग बनने देने के बदले, उसे समृद्धिशाली और सुखी बनाया जाये। अगर भारतको साम्राज्यका एक लाभजनक भाग बनाये रखना है तो यह बिलकुल जरूरी है कि उसकी वर्तमान जनसंख्याके बहुत-से हिस्सेको कम करने के उपाय खोजे जायें। इस दृष्टिसे हमें मान लेना चाहिए कि भारतीयोंको साम्राज्यके उन दूसरे देशोंमें, जिनमें मजदूरोंकी जरूरत है, जाने और उपजीविकाके नये मार्ग खोजने में प्रोत्साहित करना ब्रिटिश सरकारको नीतिका अंग है, उन्हें हतोत्साह करना नहीं। इस तरह हम देखेंगे कि ब्रिटिश उपनिवेशोंमें कुलियोंके आगमनका प्रश्न भारतके सुधार और उद्धारकी गहराईतक पहुँचनेवाला है। उसपर इस महान् सम्पदाके ब्रिटिश साम्राज्यमें रहने या न रहने का प्रश्न भी अवलम्बित हो सकता है। यह उस प्रश्नका साम्राज्यगत पहलू है। इससे साम्राज्य-सरकारको इस इच्छाका सीधा