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दक्षिण अफ्रीकावासी ब्रिटिश भारतयोंकी कष्ट-गाथा

लोगोंकी अपेक्षा अवश्य ही बहुत कठिन होता है, जिनके अप्रिय जीवनके आरम्भ में सद्-असद्-विवेकको वृत्ति भले ही रही हो, किन्तु वह बहुत पहले ही निकाली जा चुकी है। जो लोग ठीक बेचते समय सड़ी-गली कम्पनियोंको झूठी तौरपर अच्छी और बड़ी बनाकर दिखा देते हैं और जो दूसरे लोग इसी तरहके आचरणके होते हैं, उनसे यह अपेक्षा करना अवश्य ही असंगत होगा कि उनमें स्वार्थके अलावा कोई दूसरा भाव प्रबल हो। परन्तु औसत दर्जे के व्यापारीके सामने जब नीति-अनीतिका संघर्ष खड़ा होता है तब अक्सर न्यायकी ही विजय होती है। आम तौरसे समस्त दक्षिण आफ्रिकियों और खास तौरसे ट्रान्सवालवासियोंको ये संघर्ष जिस रूपमें झेलने पड़ते हैं, उसके कारणोंमें एक है 'कुली व्यापारियों' का प्रश्न—हमने अपने भारतीय और अरब भाइयोंको यही उपाधि तो दे रखी है। इन व्यापारियोंकी—और ये सचमुच व्यापारी ही है—स्थितिने ही इतना ध्यान आकर्षित किया है, और अब भी वह कम दिलचस्पी और विरोध-भाव पैदा नहीं कर रही है। और इनकी स्थितिका खयाल करके ही इनके व्यापारी प्रतिस्पधियोंने अपनी स्वार्थसिद्धिके लिए, सरकारके माध्यमसे, इन्हें वह दण्ड देनेका प्रयत्न किया है, जो प्रत्यक्ष रूपमें बहुत ज्यादा अन्याय-जैसा दिखता है।

प्रातःकालीन पत्रोंमें जब-तब भारतीय तथा अरब व्यापारियोंके कार्योंके बारेमें कुछ अनुच्छेद प्रकाशित होते रहते हैं। उनसे वह चीख-पुकार मनमें ताजी होती रहती है, जो थोड़े ही दिन पहले ट्रान्सवालकी राजधानीमें कुलोव्यापारियोंके बारेमें मची थी।

उन आदरास्पद और कठोर परिश्रम करनेवाले लोगोंको इतना गलत समझा गया है कि उनकी राष्ट्रीयताकी ही उपेक्षा हो गई है। उनपर एक ऐसा बुरा नाम जड़ दिया गया है, जिसके मानो उनको उनके सहजीवियोंकी दृष्टिमें नितान्त निम्न स्तरपर रख देना है। फिर, यदि उपर्युक्त याददिहानियोंके होते हुए कोई क्षण-भरके लिए उनकी चर्चा छेड़ दे तो शायद वह क्षमा किये जानेकी न्यायपूर्वक अपेक्षा कर सकता है। उनकी आर्थिक प्रवृत्तियोंको दृष्टिसे भी, जिनकी सफलतापर उनको बदनाम करनेवाले अनेक लोग ईर्ष्या करेंगे, वह आन्दोलन समझमें नहीं आता। वह आन्दोलन उक्त प्रवृत्तियाँ चलानेवालों को अर्धसभ्य-धर्मावलम्बी देशी लोगोंकी कोटिमें रख देगा, उन्हें बस्तियोंमें ही रहने के लिए बाध्य कर देगा और ट्रान्सवालके काफिर लोगोंपर लागू किये गये कानूनोंसे भी सख्त कानूनोंके प्रतिबन्धमें रखेगा। ट्रान्सवाल और इस उपनिवेशमें यह धारणा फैली हुई है कि शान्त और नितान्त निर्दोष 'अरब' दूकानदार और उतने ही निर्दोष भारतीय, जो अपने बढ़िया मालके गट्ठर पीठपर लादे घर-घर घूमते हैं, 'कुली' हैं। इसका कारण जिस जातिमें वे