पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६
सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

उत्पन्न हुए हैं, उसके बारेमें हमारा आलस्यमय अज्ञान है। अगर कोई सोचे कि काव्यमय तथा रहस्यपूर्ण पुराणोंवाले ब्राह्मण-धर्मकी कल्पनाने 'कुली व्यापारियों' की भूमिमें ही जन्म पाया था, चौबीस शताब्दियोंके पूर्व उसी भूमिमें देवतुल्य बुद्धने आत्मत्यागके महान् सिद्धान्तका उपदेश और पालन किया था, और हम जो भाषा बोलते हैं, उसके मौलिक तत्त्वोंकी खोजें उसी प्राचीन देशके पर्वतों और मैदानोंमें हुई थी, तो वह अफसोस किये बिना नहीं रह सकता कि उस जातिके वंशजोंके साथ तत्त्वशून्य बर्बरों और बाह्य जगत्के अज्ञानमें डूबे हुए लोगोंकी सन्तानोंके तुल्य बरताव किया जाता है। जिन लोगोंने भारतीय व्यापारियोंके साथ बातचीत करने में कुछ मिनट भी बिताये हैं, वे यह देखकर शायद आश्चर्यमें पड़े होंगे कि वे तो विद्वानों और सज्जनोंसे बातें कर रहे हैं। इन विनम्र व्यक्तियोंने बम्बई और मद्रासके स्कूलों, हिमालयके अंचलों तथा पंजाबके मैदानोंके ज्ञान-सरोवरोंसे छककर ज्ञान-पान किया है। हो सकता है कि वह ज्ञान हमारी जरूरतोंके अनुकूल न हो, हमारी रुचिसे मेल न खाता हो और हमारे व्यावहारिक जीवनमें उपयोगी होनेकी दृष्टिसे बहुत अधिक रहस्यपूर्ण हो। फिर भी वह ऐसा ज्ञान है, जिसकी सिद्धि के लिए उतनी ही लगन, उतनी ही साहित्यिक तत्परता और उससे भी बहुत अधिक सुकुमार और काव्यमय स्वभावकी आवश्यकता होती है, जितनी कि ऑक्सफोर्ड और केंब्रिजके उच्चतम विद्यालयोंमें। अनेकानेक युगों और पीढ़ी-दर-पीढ़ी परम्पराओंके व्यतीत हो जानेसे भारतका जो तत्त्वज्ञान अब धूमिल पड़ गया है, वह उस समय आनन्दके साथ पढ़ाया जाता था जबकि श्रेष्ठतर बोअरों और श्रेष्ठतर अंग्रेजोंके पूर्वज अपने देशोंके दलदलों और जंगलोंमें भालुओं तथा भेड़ियोंका शिकार करते घूमने में सर्वोच्च आनन्द प्राप्त करके सन्तुष्ट रहते थे। इन पूर्वजोंमें जब उच्चतर जीवनका कोई विचार उदित भी नहीं हुआ था, जब आत्म-संरक्षण ही उनका प्रथम कानून और अपने पड़ोसियोंके गाँवका विध्वंस और उनकी पत्नियों और बच्चोंको पकड़ ले जाना ही उनका उत्कटतम आनन्दोत्सव था, उस समय भारतके तत्त्वज्ञानी जीवनकी समस्याओंके साथ हजार वर्षतक संघर्ष करके थक चुके थे। उसी ज्ञान-भूमिके बच्चोंको आज 'कुली' कहकर अपमानित किया जा रहा है और उनके साथ काफिरोंका-सा व्यवहार हो रहा है।

अब तो ऐसा समय आ गया है कि जो लोग भारतीय व्यापारियोंके विरुद्ध चीख-पुकार मचाते हैं, वे उन्हें बतायें कि वे कौन हैं और क्या है। उनके घोरतम निन्दकोंमें अनेक ब्रिटिश प्रजाजन हैं, जो एक शानदार समाजको सदस्यताके अधिकारों तथा विशेषाधिकारोंका उपभोग कर रहे हैं। अन्यायसे घृणा और औचित्यसे प्रेम उनका जन्मसिद्ध गुण है और जब उनका मामला होता है तब, चाहे अपनी सरकारके प्रति हो, चाहे विदेशी सरकारके, वे अपने