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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

तीयोंकी लगभग ५१,००० है। इन ५१,००० भारतीयोंमें ३०,००० स्वतन्त्र भारतीय, १६,००० गिरमिटिया और ५,००० अपनी खर्चसे आये हुए व्यापारी हैं। स्वतन्त्र भारतीय वे हैं, जिन्होंने अपनी गिरमिटकी अवधि पूरी कर ली है और अब घरेलू नौकरों, छोटे-छोटे किसानों, सब्जीके फेरीवालों, फल बेचनेवालों, सुनारों, कारीगरों, छोटे-छोटे दुकानदारों, शिक्षकों, फोटोग्राफरों, अटर्नियोंके मुंशियों आदिके विविध कार्यों द्वारा जीवन-निर्वाह करते हैं। गिरमिटिया अभी अपनी गिरमिटकी अवधि पूरी कर रहे हैं। स्वतंत्र रूपसे आये हुए लोग या तो व्यापारी हैं या दूकानदारोंके सहायक। ये व्यापारी दक्षिण आफ्रिकाके जिन मूल निवासियोंको जूलू या काफिर कहा जाता है, उनके योग्य कपड़े आदिका और भारतीयोंके योग्य लोहे आदिके सामान, कपड़े और किरानेका व्यापार करते हैं। भारतीयोंके लिए कपड़ा और किराना बम्बई, कलकत्ता तथा मद्राससे मँगाया जाता है। स्वतन्त्र और गिरमिटिया भारतीय बम्बई, मद्रास और कलकत्तासे आये हैं और वे संख्या में लगभग बराबर-बराबर हैं। भारतीयोंका आगमन ऐसे समयमें फिरसे जारी हुआ, जबकि नेटालकी विधानसभाके एक सदस्य श्री गालैंडके कथनानुसार "उपनिवेशकी हस्ती डाँवाँडोल थी।" गिरमिटकी शर्तें संक्षेपमें ये हैं कि गिरमिटियोंको पाँच वर्षतक अपने मालिकका काम करना होगा। उसकी पहले वर्षकी माहवार मजदूरी १० पौंड[१] होगी और बादेके हर वर्ष उसमें १ पौंडकी[२] वद्धि की जायेगी। इसके अलावा, गिरमिटकी अवधिमें भोजन, वस्त्र और रहने का स्थान मुफ्त दिया जायेगा। नेटाल आनेका मार्ग-व्यय भी मालिकके जिम्मे होगा। अगर पहले पाँच वर्षों के बाद कोई स्वतन्त्र मजदूरके तौरपर उपनिवेशमें पाँच वर्ष और काम करे, तो वह अपने, अपनी पत्नीके और अगर बच्चे हों तो उनके लिए भी, भारत लौटने का मुफ्त टिकट पानेका हकदार हो जायेगा। भारतीय मजदूरोंको गन्ने के खेतों और चायके बागानमें काम करने के लिए और काफिरोंकी जगह भरने के लिए भारतसे लाया गया है। उपनिवेशियोंने काफिरोंको लापरवाह और अस्थिर प्रवत्ति का पाया था। रेलवेमें और उपनिवेशकी सफाईके कामोंमें भी सरकार भारतीयोंको बड़ी संख्यामें नियुक्त करती है। उपनिवेशियोंने शुरू-शुरूमें भारतसे मजदूरोंको लानेके लिए १०,००० रुपये [पौंड?] की मदद मंजूर करके उपनिवेशके उद्योगोंको मदद पहुँचाई थी। उत्तरदायी शासनका लगमग पहला काम यह हुआ कि उसने इस अनुदानको बन्द कर दिया। उसका कहना था कि इन उद्योगोंको अब इस तरहकी सहायताकी जरूरत नहीं है।

नेटालमें पहली शिकायत : मताधिकार

१५ जुलाई, १८५० के शाही फरगनमें व्यवस्था है कि कोई भी बालिग पुरुष, जो दक्षिण आफ्रिकाका मूल निवासी न हो, और जिसके पास ५० पौंड मूल्यकी जायदाद हो, या जो ऐसी जायदादका १० पौंड सालाना किराया देता हो, मतदातासूचीमें शामिल किये जानेका अधिकारी होगा। देशी लोगोंके मताधिकारका नियन्त्रण

  1. स्पष्टः यह भूल है। यहाँ 'शिलिंग' होना चाहिए।
  2. स्पष्टः यह भूल है यहाँ 'शिलिंग' होना चाहिए था।