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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

है, फिर भी यदि ब्रिटेन-स्थित सरकार इसे मंजूर करे तो वे इन परिवर्तनोंकी अनुमति देने के लिए तैयार है। शर्त यह होगी कि अनिवार्य वापसीकी धाराके भंग किये जानेको कभी भी फौजदारी अपराधका रूप न दिया जाये। (सहपत्र ५)

भारत गये हुए आयोगकी रिपोर्ट के अनुरूप, १८९५ में नेटाल-सरकारने भारतीय प्रवासी कानून संशोधन विधेयक पेश किया। उसमें अन्य बातोंके साथ-साथ इकरारनामेकी अवधि अनिश्चित कालतक बढ़ा देने या प्रवासियोंको अनिवार्य रूपसे वापस भेज देनेका विधान किया गया है। उसमें यह भी कहा गया है कि जो प्रवासी इकरारनामा दुहराने के लिए तैयार न हो और भारत वापस भी न जाये, उसे हर वर्ष ३ पौंड सालाना शुल्कका परवाना लेना होगा। इस तरह स्पष्ट है कि यह विधेयक वाइसरायके उपर्युक्त खरीतेमें बताई गई शतोंसे आगे बढ़ गया है। इस विधेयकपर आपत्ति करते हुए नेटालके दोनों सदनोंको प्रार्थनापत्र[१] भेजे गये, परन्तु उनका कोई लाभ नहीं हुआ (सहपत्र ५, परिशिष्ट क तथा ख)। श्री चेम्बरलेन तथा भारत-सरकारको भी एक प्रार्थनापत्र भेजा गया है। उसमें अनुरोध किया गया है कि या तो विधेयकको नामंजूर कर दिया जाये या भविष्यमें नेटालको मजदूर भेजना बन्द कर दिया जाये (सहपत्र ६[२])। लन्दन 'टाइम्स' ने ३–५–९५ [९६?] के एक अग्रलेखमें इन प्रार्थनाओंका जोरदार समर्थन किया है।

दस वर्ष से अधिक हुए, नेटालके तत्कालीन गवर्नरने भारतीयोंके प्रवाससे सम्बद्ध विभिन्न विषयोंपर रिपोर्ट देने के लिए एक आयोगकी नियुक्ति की थी। उसकी रिपोर्ट से प्रमाण देकर उक्त प्रार्थनापत्र में बताया गया है कि उस समय आयुक्तों तथा तत्कालीन सबसे बड़े लोगोंका, जिनमें वर्तमान महान्यायवादी भी शामिल थे, खयाल यह था कि इस प्रकारका कोई भी कानून बनाना भारतीयोंके प्रति क्रूरतापूर्ण अन्याय और ब्रिटिश नामपर कलंक-रूप होगा।

प्रार्थनापत्र अब भी श्री चेम्बरलेन और भारत-सरकारके विचाराधीन है। (सहपत्र ६)

तीसरी शिकायत : कर्फ्यु

नेटालमें एक कानून है (१८६९ का कानून नं॰ १५)। उसमें व्यवस्था है कि शहरोंमें कोई भी "गैर-गोरा व्यक्ति" ९ बजे रातके बाद तबतक घरसे बाहर नहीं निकल सकता, जबतक वह अपने बारेमें ठीक कैफियत न दे सके, या अपने मालिक से प्राप्त परवाना न दिखा सके। शायद यह कानून पूरी तरह अनावश्यक नहीं है, परन्तु इसका अमल अक्सर बहुत अत्याचारपूर्ण ढंगसे होता है। ऐसे अवसर अक्सर आये है, जब कि शिक्षकों तथा अन्य प्रतिष्ठित भारतीयोंको, किसी भी कामसे क्यों न हो, ९ बजे रातके बाद घरसे निकलनेपर भयानक काल-कोठरियोंमें बन्द कर दिया गया है।

  1. देखिए खण्ड १, पृ॰ २०६–९ और ३३४–४०।
  2. देखिए खण्ड १, पृ॰ २४०–५४।