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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय


यहाँपर शिकायतोंकी सूची लगभग समाप्त हो जाती है।

इन टिप्पणियोंका इरादा विभिन्न सहपत्रोंकी एवज पूरी करना नहीं है। सादर निवेदन है कि ये समग्र प्रश्नके समुचित अध्ययनके लिए आवश्यक हैं। वास्तवमें ये टिप्पणियाँ उन तमाम स्मरणपत्रों और पुस्तिकाओंके अध्ययनमें सहायक होंगी, जिनमें विभिन्न सूत्रोंसे एकत्रित मूल्यवान जानकारी दी गई है।

पूरे प्रश्नको लंदन 'टाइम्स' ने इस प्रकार पेश किया है :

क्या ब्रिटिश भारतीयोंको, जब वे भारत छोड़ते हैं, कानूनके सामने वही दर्जा मिलना चाहिए, जिसका उपभोग अन्य ब्रिटिश प्रजाएँ करती हैं? वे एक ब्रिटिश प्रदेशसे दुसरेको स्वतंत्रतापूर्वक जा सकते हैं या नहीं, और सहयोगी राज्योंमें ब्रिटिश प्रजाके अधिकारोंका दावा कर सकते हैं या नहीं?

फिर :

भारत-सरकार और स्वयं भारतीय विश्वास करते हैं कि दक्षिण आफ्रिका ही वह स्थान है, जहाँ उनको मान-मर्यादाके इस प्रश्नका निबटारा होना चाहिए। अगर वे दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश प्रजाको मान-मर्यादा प्राप्त कर लेते हैं तो अन्यत्र उन्हें वह मान-मर्यादा देनेसे इनकार करना लगभग असम्भव हो जायेगा। अगर वे दक्षिण आफ्रिकामें वह स्थिति प्राप्त करने में असफल रहे, तो अन्यत्र उसे प्राप्त करना उनके लिए कठिन होगा।

इस प्रश्नका विवेचन साम्राज्यिक प्रश्नके तौरपर किया गया है और सब दलोंने बिना किसी भेदभावके दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंका समर्थन किया है।

लन्दन 'टाइम्स' में इस प्रश्नपर प्रकाशित हुए लेखोंकी तारीखें निम्नलिखित है :

२८ जून, १८९५ साप्ताहिक संस्करण
३ अगस्त, १८९५ {{{1}}} {{{1}}}
१३ सितम्बर, १८९५ {{{1}}} {{{1}}}
६ सितम्बर, १८९५ {{{1}}} {{{1}}}
१० जनवरी, १८९६ {{{1}}} {{{1}}}
७ अप्रैल, १८९६ 'टाइम्स'
२० मार्च, १८९६ साप्ताहिक संस्करण
२७ जनवरी, १८९६ 'टाइम्स'

पोर्तगीज प्रदेश—डेलागोआ-बे में कोई शिकायतें नहीं हैं। वह एक अनुकूल फर्क बतानेवाला प्रदेश है। (सहपत्र ३)

गांधी

एक छपी हुई अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ११४५) से।