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भाषण : बम्बईकी सार्वजनिक सभामें

"कुली" ही हैं। दो सज्जन जहाजों और बड़ी-बड़ी जमीन-जायदादोंके मालिक हैं। परन्तु वे "कुली जहाज मालिक" हैं, और उनके जहाजोंको "कुली-जहाज" कहा जाता है।

आप देखेंगे, हरएक भारतीय हर दूसरे भारतीयके बारेमें जो साधारण दिलचस्पी रखता है उसके अलावा इस विषयमें तीन मुख्य प्रान्तोंकी[१] विशेष दिलचस्पी है। अगर बम्बई-प्रान्तने उतनी ही बड़ी संख्यामें अपने पुत्रोंको दक्षिण आफ्रिका नहीं भेजा तो उसने इस कमीकी पूर्ति अपने पुत्रोंके अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव और धनसे कर दी है। वास्तवमें वे अपने अन्य प्रदेशोंके कम सौभाग्यशाली भाइयोंके हितोंके संरक्षक बन गये हैं। और यह सम्भव है कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको उनकी मुसीबतसे उबारने के प्रयत्नोंमें[२] भारतमें भी बम्बई ही अग्रणी रहे।

सन् १८९४ के विधेयककी प्रस्तावनामें कहा गया था कि एशियाई लोग प्रातिनिधिक संस्थाओं के अभ्यस्त नहीं है। फिर भी, विधेयकका सच्चा उद्देश्य भारतीयोंके मताधिकारको इस कारणसे छीनना नहीं था कि वे योग्य नहीं हैं, बल्कि इस कारणसे छीनना था कि यूरोपीय उपनिवेशी भारतीयोंको नीचे गिराना और वर्ग-भेदके कानून बनाने का अधिकार जताना चाहते थे—भारतीयोंके साथ यूरोपीयोंके प्रति किये जानेवाले व्यवहारसे भिन्न व्यवहार करना चाहते थे। यह न सिर्फ विधेयकके दूसरे वाचन पर सदस्योंके भाषणोंसे, बल्कि समाचार पत्रोंसे भी स्पष्ट था। उन्होंने यह भी कहा था कि भारतीयोंके मत यूरोपीयोंके मतोंको निगल सकते हैं, इसलिए उनका मताधिकार छीन लेना ही ठीक होगा। परन्तु यह दलील भी लचर है, और थी। १८९१ में लगभग १०,००० यूरोपीय मतदाताओंके विरुद्ध भारतीय मतदाताओंकी संख्या केवल २५१ थी। अधिकतर भारतीय इतने गरीब हैं कि उन्हें सम्पत्तिके आधारपर मिलनेवाले मताधिकारका हक हो ही नहीं सकता। और नेटालके भारतीयोंने राजनीतिमें कभी हस्तक्षेप नहीं किया, न वे राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की इच्छा ही करते हैं। ये सब बाते 'नेटाल मर्क्युरी' ने स्वीकार की हैं। वह नेटाल-सरकारका मुखपत्र है। समर्थक उद्धरणोंके लिए आप मेरी भारतमें प्रकाशित छोटी-सी पुस्तिका[३] देख लें। हमने स्थानिक संसदको प्रार्थनापत्र देकर बताया था कि भारतीय प्रातिनिधिक संस्थाओंसे अपरिचित नहीं हैं। परन्तु हम अपने उद्देश्यमें असफल रहे। इसपर हमने तत्कालीन उपनिवेश-मन्त्री-लॉर्ड रिपनको प्रार्थनापत्र भेजा। दो वर्षकी लिखा-पढ़ीके बाद इस वर्ष १८९४ का विधेयक वापस ले लिया गया। उसके बदले में एक दूसरा विधेयक तैयार कर दिया गया है। यह पहलेके विधेयक जितना बुरा तो नहीं है, फिर भी काफी बुरा है। इसमें कहा गया है कि "जिन देशोंमें संसदीय मत

  1. बम्बई, मद्रास, और बंगाल प्रदेश जिन्हें 'प्रेसिडेंसी' कहा जाता था।
  2. बम्बई प्रेसिडेंसी एसोसिएशनने बादमें भारतमन्त्रीके नाम एक प्रर्थना-पत्र भेजा जिसमें मांग की गई थी कि दक्षिण अफ्रीकावासी भारतीयोंकी शिकायत दूर की जायें।
  3. 'हरी पुस्तिका'।