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भाषण : बम्बईकी सार्वजनिक सभामें

मिथ्या है। फिर आप नेटालमें मताधिकार क्यों चाहते हैं?" हमारा नम्र जवाब यह है कि नेटालमें हम मताधिकार माँगते नहीं, यूरोपीय हमें उस अधिकारसे वंचित करना चाहते हैं, जिसका हम उपभोग कर रहे हैं। इससे बहुत बड़ा फर्क हो जाता है। मताधिकार छीनने का मतलब होगा हमारी गिरावट। भारतमें ऐसी कोई बात नहीं है। भारतकी प्रातिनिधिक संस्थाओंको धीरे-धीरे परन्तु निश्चयपूर्वक व्यापक बनाया जा रहा है। नेटालमें ऐसी संस्थाओंके द्वार उत्तरोत्तर हमारे लिए बन्द किये जा रहे है। फिर, जैसाकि लंदन 'टाइम्स' ने कहा है : "भारतमें भारतीयोंको ठीक वही मताधिकार प्राप्त है, जिसका उपभोग वहाँ अंग्रेज करते हैं"। नेटालमें ऐसा नहीं है। नेटालमें जो बात एकके लिए इष्ट होती है वही बात उन्हीं परिस्थितियोंमें दूसरेके लिए इष्ट नहीं मानी जाती। इसके अलावा, मताधिकार छीनना कोई राजनीतिक कार्रवाई नहीं, केवल व्यापारिक नीति है, जो कि शिष्ट भारतीयोंके आगमनको रोकने के लिए अंगीकार की गई है। ब्रिटिश प्रजा होने के नाते उन्हें वही विशेषाधिकार मांगने का हक होना चाहिए, जो किसी भी ब्रिटिश राज्य या उपनिवेशमें दूसरे ब्रिटिश प्रजाजनोंको प्राप्त है। जिस तरह इंग्लैंड जानेवाले किसी भी भारतीयको वहाँकी संस्थाओंका अंग्रेजोंके बराबर ही पूरा-पूरा लाभ उठाने का अधिकार होता है, ठीक वैसा ही अधिकार अन्य ब्रिटिश क्षेत्रोंमें भी भारतीयोंको होना चाहिए। तथापि, सच बात तो यह है कि भारतीय मतोंके यूरोपीय मतोंको निगल जानेका कोई डर है ही नहीं। यूरोपीय तो वर्ग-भेदके कानून चाहते हैं। मताधिकार-सम्बन्धी वर्गगत कानून तो सिर्फ अँगूठा पकड़कर पहुँचा पकड़ने की तैयारी मात्र है। वे भारतीयोंको म्युनिसिपल-अधिकारोंसे भी वंचित करने का विचार कर रहे हैं। महान्यायवादीने इसी आशयका एक वक्तव्य भी दिया था। यह वक्तव्य पहला मताधिकार-विधेयक पेश होनेपर एक सदस्यके इस सुझावके उत्तरमें दिया गया था कि भारतीयोंको म्युनिसिपल-मताधिकारसे भी वंचित कर दिया जाना चाहिए। एक अन्य सदस्यने था कि जबतक हम भारतीयोंके प्रश्नका निबटारा करते हैं, तबतक उपनिवेशका और सरकारी नौकरियोंका दरवाजा भारतीयोंके लिए बन्द रखा जाये।

केप-उपनिवेशमें भी, जहाँकी सरकार ठीक नेटाल-सरकार जैसी ही है, भारतीयोंकी हालत बदतर होती जा रही है। हालमें ही केपकी संसदने एक विधेयक मंजूर किया है। उससे ईस्ट लन्दन म्युनिसिपैलिटीको अधिकार दिया गया है कि वह भारतीयोंको पैदल-पटरियोंपर चलने से रोकने और विशेष स्थानोंमें रहने के लिए बाध्य करने के उपनियम बना सकती है। ये स्थान साधारणतः अस्वास्थ्यकारी दलदल है, और मनुष्योंके रहने के अयोग्य हैं। व्यापारकी दृष्टि से तो वे बेकार है ही। जूलूलैंड ताजका उपनिवेश है, इसलिए सीधे ब्रिटिश सरकारके शासनाधीन है। वहाँ नोंदवेनी और एशोवे बस्तियोंके सम्बन्धमें ऐसे नियम बनाये गये हैं कि उन बस्तियोंमें कोई भारतीय न तो जमीन खरीद सकता है, न हासिल कर सकता है, हालाँकि उसी देशकी मेलमॉथ नामक बस्तीमें भारतीय २,००० पौंडकी जायदादके मालिक हैं। ट्रान्सवाल एक डच गणराज्य है। वह जेमिसनके हमलेका स्थान और पश्चिमी दुनियाके स्वर्ण-अन्वेषकोंका