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पत्र : फर्दुनजी सोराबजी तलेयारखाँको

हूँ कि एक मित्र-राज्यका सम्राज्ञीकी प्रजाके किसी भी अंगके लिए अपने द्वार बन्द करना एक अमैत्रीपूर्ण कार्य है। और ऐसी स्थितिमें, मेरा नम्र विचार है, उसे सफलता के साथ रोका जा सकता है।

सज्जनो, दक्षिण आफ्रिकाके सबसे ताजे समाचारोंसे मालूम होता है कि वहाँके यूरोपीय लोग भारतीयोंको बरबाद कर देनेके लिए लोगोंको समझाने-बुझानेमें जुटे हुए हैं। वे भारतीय कारीगरोंके लाये जाने के विरुद्ध हर तरहका आंदोलन कर रहे हैं।[१] इस सबसे हमें चेतावनी और गति प्राप्त करनी चाहिए। हम दक्षिण आफ्रिकामें चारों ओरसे घिरे हुए हैं। अभी हम शैशवावस्थामें है। हमें आपसे संरक्षणके लिए प्रार्थना करने का अधिकार है। हम अपनी स्थिति आपके सामने, रख रहे हैं और अब अगर हमारे कन्धोंसे उत्पीड़नका जुआ न हटा तो बहुत हदतक जिम्मेदारी आपके सिर होगी। उस जुएमें जुते होनेके कारण हम पीड़ासे केवल कराह सकते हैं। उसे हटाना आपका—हमारे बड़े और अधिक स्वतन्त्र भाइयोंका काम है। मझे विश्वास है, हमारी पुकार व्यर्थ न होगी।

[अंग्रेजीसे]
टाइम्स ऑफ इंडिया, २७-९-१८९६, तथा बॉम्बे गजट, २७-९-१८९६
 

५. पत्र : फर्दुनजी सोराबजी तलेयारखाको

मारफत : श्री रेवाशंकर जगजीवन ऐंड कं॰
चम्पागली
बम्बई
१० अक्तूबर, १८९६१[२]

प्रिय श्री तलेयारखाँ[३]

मैं आपको इससे जल्द नहीं लिख सका और न दक्षिण आफ्रिकाके मुख्य लोगोंके नाम ही भेज सका। मुझे भरोसा है कि आप कृपाकर मेरी इस असमर्थताके

  1. यूरोपीयोंने डर्बन में सार्वजनिक सभाएँ करके भारतीय प्रवसी न्यास निकाय के इस निर्णय का विरोध किया था कि नेटालकी टोंगाट शक्कर जायदादोंमें काम करने के लिए भारतीय कारीगरोंको लाने दिया जाये। भारतीयों के आगमनको 'एशियाईयोंका हमला' बताया गया था और उसे रोकने के लिए एक 'औपनिवैशिक देशभक्त संघ' का गठन किया गया था।
  2. मूल पत्रमें १०–८–१८९६ की तारीख पड़ी हुई है क्योंकि इसी पत्रमें आगे गांधीजी कल (रविवार) को सामकी
  3. बम्बईके एक बैरिस्टर जिन्होंने गांधीजी के साथ ही बैरिस्टरीकी परिक्षा पास की थी और उनके साथ एक ही जहाज से भारत लौटे थे।