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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

लिए मुझे क्षमा करेंगे। इसका कारण यह है कि मैं अपने घरेलू कामोंमें बहुत व्यस्त रहा हूँ। यह पत्र में आधी रातको लिख रहा हूँ।

मैं कल (रविवारको) शामकी डाकगाड़ीसे मद्रासके लिए रवाना हो रहा हूँ। वहाँ एक पखवारेसे ज्यादा रहने की आशा नहीं करता। अगर मैं वहाँ सफल हुआ तो वहींसे कलकत्ता जाऊँगा और आजसे एक महीनेके अन्दर बम्बई लौट आऊँगा। बादमें पहले जहाजसे नेटालके लिए रवाना हो जाऊँगा।

नेटालसे प्राप्त ताजेसे-ताजे अखबारोंसे मालूम होता है कि अभी बहुत लड़ाई बाकी है। और अगर लक्ष्यको पूरी तरह निभाना है तो सिर्फ यही आपके-जैसे काम करनेवाले दो व्यक्तियोंका ध्यान खपा लेनेके लिए काफी है। मुझे सचमुचता है कि आपको नेटाल आकर मेरा साथ देनेमें कोई अड़चन नहीं होगी। मुझे निश्चय है कि लक्ष्य लड़ने लायक है।

अगर आप मुझे लिखना चाहें तो ऊपरके पतेपर लिख सकते हैं। आपके पत्र मेरे पास मद्रास भेज दिये जायेंगे। मालूम नहीं, वहाँ मैं किस होटलमें ठहरूँगा। नेटालके होटलोंने मुझे बिलकुल डरा दिया है।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

मूल अंग्रेजीसे; सौजन्य : रुस्तमजी फर्दुनजी सोराबजी तलेयारखाँ

 

६. एक पत्र

बकिंघम होटल
मद्रास
१६ अक्तूबर, १८९६

प्रिय महोदय,

आपकी सेवामें मैं बुकपोस्ट द्वारा प्रार्थनापत्रका मसौदा परिशिष्टों-सहित भेज रहा हूँ। मुझे खेद है कि मैं इसे पिछले शनिवार तक तैयार नहीं कर सका। और इससे भी अधिक मुझे इस बातका खेद है कि यह साफ-सुथरी लिखावटमें नहीं है। इसके लिए मैं लाचार था।

निःसन्देह, यह तो माननीय श्री मेहता पर ही निर्भर होगा कि संलग्न प्रार्थनापत्र भेजा जाये, या पत्र या मात्र एक सहपत्र।

हर हालतमें, मैं आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करना चाहँगा कि प्रथम मताधिकार-प्रार्थनापत्र, आप्रवास कानून संशोधन-प्रार्थनापत्र और ट्रान्सवाल पंच-निर्णय प्रार्थनापत्र भेजे जा चुके हैं। समादेश, जूलूलैण्ड और द्वितीय मताधिकारप्रार्थनापत्रों पर श्री चेम्बरलेन अभी विचार कर रहे हैं। ऑरेंज फ्री स्टेट और केप