पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/९

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भूमिका

इस खण्ड का सम्बन्ध गांधीजी के जीवनकी एक महत्त्वपूर्ण मंजिलसे है। उनके और दक्षिण आफ्रिकी सरकारके बीच भावी संघर्षके चिह्न १८९६ में ही प्रकट हो चुके थे और इस खण्डम जो कागज-पत्र पाठकोंके सामने रखे जा रहे हैं, उनमें उन चिह्नोंकी झलक मिलेगी। गांधीजी ने जब पहली बार लोकहितके लिए अपने प्राणोंको जोखिममें डाला था, उस प्रसंगकी परिस्थितियोंका लेखा भी इस खण्डमें उपलब्ध है।

गांधीजी १८९६ में स्वदेश लौटे थे। उस समय वे २६ वर्षके थे। दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके साथ जो व्यवहार किया जा रहा था उसका परिचय भारतकी जनता और अधिकारियोंको देनेकी जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई थी। उन्होंने भारतमें राजनीतिक जीवनके मुख्य-मुख्य केन्द्रोंका दौरा किया, लोकनेताओंसे मुलाकात की और बड़ी-बड़ी सार्वजनिक सभाओंमें भाषण दिये। उक्त विषयपर उन्होंने कुछ पुस्तिकाएँ भी प्रकाशित की।

इनमें से एक पुस्तिका आम तौरपर 'ग्रीन पैम्फलेट' ('हरी पुस्तिका', पृ॰ २–३८), के नामसे प्रसिद्ध हुई थी। उसकी विषय-वस्तुके बारे में एक गलत समाचार दक्षिण आफ्रिकी पत्रोंमें प्रकाशित हुआ। भारत-स्थित एक पत्र-प्रतिनिधिने पुस्तिकाका और उसपर 'पायनियर' तथा 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' द्वारा की गई टिप्पणियोंका संक्षिप्त विवरण तार द्वारा लन्दन भेज दिया था। रायटरके लंदन-कार्यालयसे उस सारांशका भी सारांश, एक तीन पंक्तियोंका तार, दक्षिण आफ्रिका पहुंचा और उसने बड़ी-बड़ी घटनाओंका सूत्रपात कर दिया। गांधीजी ने भारतमें जो-कुछ कहा था उसके भ्रामक समाचारसे डर्बनके गोरे नागरिक क्रुद्ध हो उठे। वर्षका अन्त होते-होते, और जबकि गांधीजी को दक्षिण आफ्रिका वापस लानेवाला जहाज सवारियाँ उतारने के लिए इजाजतकी प्रतीक्षा कर रहा था, उनके विरुद्ध छिड़ा हुआ तीव्र आन्दोलन अपनी चरम सीमापर पहुंच गया। १३ जनवरी, १८९७ की शामको जब वे डर्बनमें उतरे, भीड़के एक हिस्से ने उनपर घातक आक्रमण किया और उनकी हत्या ही कर डाली होती परवे बच गये। यह उसी भीडका हिस्सा था जो पहले डर्बनके जहाज-घाटपर एकत्र हुई थी। यदि पुलिस सुपरिटेंडेंट और उनकी पत्नीने चतुराईसे काम न लिया होता तो गांधीजी के प्राणोंकी रक्षा न हो पाती।

इस खण्डका आरम्भ एक छोटे-से किन्तु ऐतिहासिक महत्त्वके दस्तावेज, 'प्रमाणपत्र' से होता है जिसके द्वारा दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंने गांधीजी को अपनी ओरसे बोलने का अधिकार दिया था। गांधीजी ने इसे 'हरी पुस्तिका' के अन्त में जोड़ दिया था। इस पुस्तिकामें दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके साथ किये जानेवाले व्यवहारका बड़ा मार्मिक चित्रण किया गया था, जहाँ "द्वेष-भावना कानूनके रूपमें

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