पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६९
पत्र : फर्दुनजी सोराबजी तलेयारखाँको


हमें अपने कामके लिए भारतमें कर्मठ और प्रतिष्ठित कार्यकर्ताओंकी एक समिति की सख्त जरूरत है। सवाल सिर्फ दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंसे नहीं बल्कि भारतके बाहर दुनियाके सब हिस्सोंमें रहनेवाले भारतीयोंसे सम्बन्ध रखता है। आपने आस्ट्रेलियाई उपनिवेशों-सम्बन्धी तार अवश्य ही पढ़ा होगा। वे दुनियाके उस हिस्से में भारतीयोंके प्रवासको रोकने का कानून बना रहे हैं। यह सर्वथा सम्भव है कि उस कानूनको सम्राज्ञीकी अनुमति मिल जाये। मेरी विनती है कि हमारे बड़े लोगोंको तुरन्त यह मामला अपने हाथमें ले लेना चाहिए। अन्यथा, बहुत थोड़े समयमें ही मारतीयोंका भारतके बाहर जाकर उद्योग करना खत्म हो जायेगा। मेरी नम्र रायसे, उस तारके विषयमें कलकत्ताकी शाही परिषदमें[१] तथा ब्रिटेनकी लोकसभामें भी प्रश्न पूछना चाहिए। दरअसल, भारत-सरकारके इरादोंके बारेमें कुछ पूछ-ताछ तत्काल होनी चाहिए।

आपने मेरी बातोंमें बहुत हमदर्दीके साथ दिलचस्पी ली थी, इसलिए मैंने सोचा कि मैं उपर्युक्त बातें आपको लिख दूँ।

आपका आज्ञाकारी,
मो॰ क॰ गांधी

मूल अंग्रेजीकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ३७१६) से।

९. पत्र : फर्दुनजी सोराबजी तलेयारखाँको

बकिंघम होटल
मद्रास
१८ अक्तूबर, १८९६

प्रिय श्री तलेयारखाँ,

आपका महत्त्वपूर्ण पत्र मिला। उसके लिए धन्यवाद।

आपने जो पूछा वह सचमुच बहुत उचित है। और आप भरोसा रखें, मैं ज्यादासे-ज्यादा स्पष्ट उत्तर दूँगा।

में यह मानकर चलता हूँ कि हम साझेमें काम करनेवाले हैं। आपके तत्काल अपना काम स्वतंत्र रूपसे शुरू करने का तो प्रश्न ही नहीं है।

डर्बनमें मेरी तिजोरीमें लगभग ३०० पौंडके चेक[२] पड़े हैं। वे १८९७ की ३१ जुलाई तक वहाँ रहने के शुल्क के हैं। उन्हें मैं यहाँकी देनदारी चुकाने और सम्भवतः अपने दफ्तरका वर्तमान खर्च पूरा करनेके लिए साझेदारीसे निकाल लेनेका

  1. गोखले वाइसरायकी विधानपरिषदके सदस्य थे।
  2. यह उल्लेख बैरिस्टरीके मेहनतानेका है, जो उन्हें भारतीय व्यापारियोंसे मिला था।