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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय


दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य—ट्रान्सवालका शासन "फोक्सराट" [लोकसभा] कहलानेवाले दो निर्वाचित सदनों और कार्यकारिणी परिषद द्वारा होता है। कार्यकारिणीका प्रमुख गणराज्यका अध्यक्ष होता है। वहाँ भारतीयोंकी आबादी लगभग ५,००० है। इनमें २०० व्यापारी हैं, जिनकी चुकता पूँजी लगभग एक लाख पौंड है। शेष लोग फेरीवाले और हजूरिया या घरेलू नौकर हैं। घरेलू नौकर इसी मद्रास प्रान्तके लोग है। वहाँकी गोरी आबादी मोटे तौरपर १,२०,००० और काफिरोंकी मोटे तौरपर ६,५०,०००है। इस गणराज्यपर प्रभसत्ता सम्राज्ञीकी है। और ग्रेट ब्रिटेन तथा इस गणराज्यके बीच एक समझौता[१] है। उसके अनुसार दक्षिण आफ्रिकाके मूल निवासियोंको छोड़कर दूसरे सब लोगोंके सम्पत्ति, व्यापार तथा कृषिके अधिकार गणराज्यके नागरिकोंके-जैसे ही सुरक्षित कर दिये गये हैं।

दूसरे राज्योंमें, कष्टों और बाधा-निषेधोंके कारण, भारतीय आबादी है ही नहीं, जिसके बारेमें कुछ कहाँ जाये। पोर्तुगीज़ प्रदेश इसके अपवाद हैं। उनमें भारतीयोंकी संख्या बहुत बड़ी है और वहाँ उनको कोई कष्ट नहीं दिया जाता।

दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके कष्ट दो प्रकारके हैं। पहले तो वे जो भारतीयोंके खिलाफ जनताकी दुर्भावनाओंसे पैदा हुए हैं। दूसरे, उनपर लादी गई कानूनी बाधाएँ और निषेध। पहलेकी चर्चा की जाये तो दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय सबसे ज्यादा द्वेष-पात्र जीव हैं। प्रत्येक भारतीयको, बिना फर्कके, तिरस्कारके साथ "कुली" कहा जाता है। उन्हें "सामी", "रामसामी"—वास्तवमें, "भारतीय" छोड़कर सबकुछ कहा जाता है। भारतीय शिक्षकोंको "कुली स्कूल मास्टर" कहा जाता है। भारतीय वस्तु-भंडार मालिक "कुली वस्तु-भंडार मालिक" हैं। बम्बईसे गये हुए दो भारतीय सज्जन—श्री दादा अब्दुल्ला और श्री मूसा हाजी कासिम जहाजोंके मालिक हैं। उनके जहाज "कुली जहाज" हैं।

वहाँ मद्रासके व्यापारियोंकी एक बड़ी प्रतिष्ठित पेढ़ी है। उसका नाम है—ए॰ कोलंडावेलु पिल्लै एंड कम्पनी। उन्होंने डर्बनमें बहुत-सी इमारतोंका एक भारी कटरा बनाया है। इन इमारतोंको "कुली वस्तु-भंडार" और इनके मालिकोंको "कुली मालिक" कहा जाता है। और, सज्जनो, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इस पेढ़ीके साझेदारों और "कुलियों" में उतना ही फर्क है, जितना कि इस सभाभवनमें बैठे हुए किसी भी व्यक्ति और कुलीमें है। सरकारी क्षेत्रोंमें जो प्रतिवाद किया गया है और बादमें जिसकी मैं चर्चा करूँगा, उसके बावजूद, मैं यह दुहराता हूँ, रेलवे और ट्रामके कर्मचारी हमारे साथ पशुओं जैसा ही व्यवहार करते हैं। हम पैदल-पटरियोंपर सकुशल चल नहीं सकते। एक बिलकूल स्वच्छ वस्त्र पहननेवाले मद्रासी सज्जन डर्बनकी मुख्य सड़कोंकी पैदल-पटरियोंपर चलना हमेशा टालते हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं अपमान न कर दिया जाय, या धक्के देकर हटा न दिया जाये।

  1. सन् १८८४ लंदन समझौता (लंदन कन्वेंशन)।