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मालेगाँवका अपराध

खड़ी है। यदि लोगोंको हम शान्ति बनाये रखनेकी बात न सिखा सकें तो हमें स्वीकार करना होगा कि हम स्वराज्य प्राप्त करनेके योग्य नहीं बने हैं। इसलिए सब स्वयं-सेवकोंको इस बातपर सबसे ज्यादा ध्यान देना चाहिए।

शराबी भले शराब न छोड़े, खिताबयाफ्ता भले खिताबसे चिपका रहे, अधिकारी भले बदतमीजीसे पेश आये, सिपाही भले हमें मारे, इतना होनेपर भी हम चुपचाप इसे सहन करें और शान्तिका त्याग न करें।

तब हम क्या करें ? मालेगाँवके लिए हम क्या प्रायश्चित्त करें? पहले तो माले-गाँवके अपराधियोंको ढूंढ़ निकालें और उन्हें समझायें कि जिन्होंने अपराध किया है वे उसे स्वीकार करें तथा निश्चयपूर्वक फाँसीपर चढ़ें । हम सब अपनी जुबानपर काबू रखें और दूसरोंसे भी वैसा ही करनेके लिए कहें। हम तीखे भाषण देना छोड़ दें, प्रत्येक अवसरपर सभाएँ और हड़तालें करनेकी आदत छोड़ दें, सरकारके दोषोंपर विचार करनेके बदले अपने दोषोंको देखते हुए अपनी कमजोरीको पहचानना सीखें और उसे दूर करने के उपाय ढूंढ़े । पण्डित अर्जुनलाल सेठी पकड़े गये। लोगोंकी भीड़ इकट्ठी हो गई और उन्होंने खूब उपद्रव किया, इसे मैं कायरताका लक्षण मानता हूँ। वे जेल नहीं जाना चाहते, वे सेठीजीको भी जेल नहीं जाने देना चाहते । इसीसे जब-जब कोई पकड़ा जाता है तब लोग उपद्रव मचानेकी बातको ही महत्त्वपूर्ण मानते हैं। यदि सेठीजीके जेल जानेसे लोगों में सचमुच शौर्य जाग पड़ा हो तो वे अपने कर्तव्यको और अधिक समझें। उन्हें जो असहयोग करना है उसे पूरा करें और स्वराज्य प्राप्त करके ही छोड़ें । स्वयं दुर्व्यसनोंको छोड़ें, स्वयं जो विदेशी कपड़े पहनते हों उन्हें फेंक दें, चरखा न चलाते हों तो चरखा चलाना शुरू कर दें। सेठीजीके पकड़े जानेपर जिन्होंने धाँधली मचाई थी उनमें से कितने ही शराबी थे, कितने ही विदेशी वस्त्र पहननेवाले थे और बहुतसे तो चरखा चलानेवाले भी थे यह बात ध्यान देने योग्य है। पिताके जीवित रहनेपर जो पुत्र उनके सद्गुणोंका कम अनुकरण करता है लेकिन पिताके मरनेपर उनका सम्पूर्ण रूपसे अनुकरण करता है वह सपूत है; न कि वह जो खूब रोता-धोता और कुहराम मचाता है अथवा बिरादरीको भोज देता है। उपद्रव मचानेसे, उपद्रव करके सेठीजीको छुड़वानेसे स्वराज्य मिल सकता हो सो बात नहीं है। इससे तो स्वराज्य मिलनेमें कुछ विलम्ब ही होगा। लेकिन अगर हम अपने कर्त्तव्यका ज्यादा अच्छी तरहसे पालन करेंगे तो स्वराज्य तो जल्दी मिलेगा ही इसके अतिरिक्त अपने बीच हम सेठीजीका स्वागत करनेकी अधिक शक्ति भी प्राप्त करेंगे। इसलिए मालेगाँव के लिए एकमात्र प्रायश्चित्त यह है कि हम स्वयं अपने मनपर, अपने क्रोधपर अधिक काबू पायें, हम व्यसनोंको छोड़ दें और चरखा चलायें तथा सिर्फ खादी पहनने लगें ।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ८-५-१९२१