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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कमानेके उद्देश्यसे भी इसे करे तो आध सेर सूतके पीछे [ अपनी कमाईमें ] दो आनेकी वृद्धि कर सकता है। प्रत्येक व्यक्तिको दिन-भरमें कातने लायक रुई पींज लेनेमें बहुत कम समय लगता है।

मेरी भूल

अनुभवके बाद देखता हूँ कि मैंने स्कूलके विद्यार्थीकी चार घंटेकी कमाई एक आना लगाकर भूल की थी। सौभाग्यसे मेरी यह भूल अधिक सावधानी बरतनेकी वजहसे हुई है। अपने अज्ञानके कारण मैंने अत्यन्त सावधानीसे काम लिया । आठ घंटे कातनेवाले की कमाई दो आने ही मानी थी। अब देखता हूँ कि आठ घंटे कातने-वाला व्यक्ति २० तोले नहीं वरन् ४० तोले आसानीसे कात सकता है। यदि हम ४० तोलेका औसत मूल्य चार आने मानें तो आठ घंटे काम करनेवाले को चार आने मिल सकते हैं। सत्याग्रहाश्रमके बालकोंने सत्याग्रह सप्ताह के दौरान केवल कातनेका ही काम किया। कुछ-एकने दस घंटेतक सूत काता । वे सवेरे कोई साढ़े चार बजेसे कातना आरम्भ करते । परिणामस्वरूप एक विद्यार्थीने दस घंटेमें ७० तोले काता । प्रति घंटा सात तोले हुआ। पाँच तोले प्रति घंटा तो बहुत सारे बच्चोंने काता । इन सबमें से किसी भी बच्चेको पाँच महीनेसे ज्यादा तालीम नहीं मिली है, और सो भी लगातार चार-चार घंटे तो किसीने नहीं काता था। इन बच्चोंकी शक्तिने मेरी आँखें खोल दी हैं और मैं देखता हूँ कि हिम्मत रखनेवाले बच्चे प्रति घंटा पाँच तोले सूत कातकर अवश्य दे सकते हैं। इस हिसाबसे चार घंटे काम करनेवाला बालक अपने स्कूलको प्रति घंटा दो पैसे दे सकता है तथा चार घंटेके हिसाबसे पच्चीस दिनके ३ रुपये २ आने दे सकता है। इसे मैं अधिकसे-अधिक आय मानता हूँ। लेकिन यदि स्कूलको हर महीने औसतन दो रुपये पड़ें तो भी २० बच्चोंके महीने भरमें ४० रुपये हुए। उत्साही बालक एक अच्छे शिक्षकको ६० रुपया मासिक दे सकते हैं। लेकिन यह तो पहली ही भूल हुई।

विशेष अनुभवसे पता चलता है कि रुई पींजने और पूनी बनानेका काम भी बालकोंको ही करना चाहिए। ऐसा होनेसे आधा सेर रुईके पीछे एक आना अतिरिक्त आय होगी। एक सेर रुई पींजने और पूनी बनानेके, मेरे खयालसे, दो आने होने चाहिए। इसमें थोड़ा समय लगेगा इसलिए अगर हम चार घंटेकी अतिरिक्त आयको चार पैसे न मानकर दो पैसे ही मानें तो २५ दिनके ५० पैसे अतिरिक्त होंगे। इसका मतलब यह हुआ कि एक अच्छा बालक ३-२-० रुपये + ०-१२-६ रुपये = ३-१४-६ रुपये देगा। पहले मेरा अनुमान केवल १-९-० रुपये था। मैंने माना था कि रुईकी धुनाई अलगसे करवानी पड़ेगी और यह काम पेशेवर धुनिये ही करेंगे। यह मेरी दूसरी भूल थी ।

इसके अतिरिक्त जब स्कूलोंमें कातने-बुननेका आन्दोलन शुरू हो तब कपास आदिका पहलेसे ही प्रबन्ध होना चाहिए और सूतके बाजार भावको देखते हुए कुछ और भी जोड़ा जाना चाहिए। एक सेर सूतके पीछे २ पैसे बढ़ाना मैं कोई ज्यादा

१. मूलमें यहाँ "साल" शब्द है जो स्पष्ट तथा छपाईंकी भूल है ।