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नहीं मानता । इन सब पैसोंका पूरा-पूरा हिसाब लगानेके बाद राष्ट्रको हर दृष्टिसे कितना लाभ हुआ है, यह तो जो कारखाने चलाते हैं उनसे पूछनेपर ही मालूम होगा । स्कूलोंमें पढ़नेवाले लाखों विद्यार्थियोंको अगर यह धन्धा सिखाया जाये, उनकी मेहनतका मूल्यांकन किया जाये और सूतके बाजारपर जनताका अंकुश रहे तो उससे राष्ट्रको कितना लाभ होगा जब मैं यह विचार करने बैठता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है कि यदि लोग इस सीधी-सादी बातको समझ जायें तो थोड़े समयमें ही देशसे भुखमरी दूर हो जाये ।

अभी एक चीज बाकी है। जब हम स्कूलोंमें बुननेका काम भी शुरू कर देंगे तो स्कूलोंकी आयके साधन और भी अधिक हो जायेंगे । जब हम एक घंटेकी कताईके दो पैसे मानते हैं तो एक घंटेकी बुनाईका हम बड़ी आसानीसे एक आना मान सकते हैं। लेकिन फिलहाल यदि हम बुनाईके कामको इसमें शामिल न करें तो भी जिस स्कूलका प्रत्येक विद्यार्थी लगभग चार रुपये कमाकर स्कूलको दे अर्थात् प्रति मास चार रुपये फीस दे तो उस स्कूलको सरकारी अनुदान अथवा किसी तरहके दानकी जरूरत नहीं है। वह आत्मनिर्भर बन जायेगा, विद्यार्थियोंको फीस भी नहीं देनी पड़ेगी।

मैंने सूरत नगरपालिकाको इस तरह शिक्षा देनेकी सलाह दी है। सूरत नगरपालिका एक लाख दस हजार रुपयेका अनुदान लेनेसे इनकार कर देनेकी बात सोच रही है। अगर ऐसा करना सम्भव हो तो ज्यादा कर भी नहीं देने पड़ेंगे, विद्यार्थियोंको शिक्षा भी मुफ्त दी जा सकेगी और इससे स्वराज्य आन्दोलनको भी अधिक सहायता मिलेगी--यह इतना अकसीर इलाज है ।

इस काममें जो मुश्किलें सामने आयेंगी, वे मेरी नजरसे ओझल नहीं हैं। सबसे बड़ी मुश्किल तो इमारतकी है। लेकिन जहाँ नागरिकोंकी सहायता प्राप्त हो वहाँ ऐसी मुश्किलोंको दूर करना आसान बात होनी चाहिए। चरखोंको इकट्ठा रखनेके लिए महाजनोंके घरों, मन्दिरों और मस्जिदोंका उपयोग किया जाना चाहिए। इस समय स्कूलोंकी इमारतोंमें जितने विद्याथियोंके बैठने की व्यवस्था है उतने विद्यार्थियोंको उनमें चरखेकी शिक्षा नहीं दी जा सकती। सौभाग्य की बात है कि चरखा थोड़ी-बहुत जगह अवश्य घेरता है और उसे श्वासोच्छ्वास नहीं लेना पड़ता, इसलिए जगह घेरनेके बावजूद वह हवाको बिगाड़नेके बदले उसे सुधारेगा और इस तरह अपेक्षाकृत कम गन्दी हवा मिलनेसे बालककी मानसिक स्थितिके अलावा शारीरिक स्थितिमें भी सुधार होगा ।

चरखेमें स्वराज्य

एक सज्जनने अत्यन्त विनयपूर्वक दलीलें पेश करते हुए चरखेकी स्वराज्य दिलाने--की शक्तिके सम्बन्धमें शंका उठाई है। यद्यपि यह पूराका पूरा पत्र प्रकाशित करने योग्य है तथापि जगहकी तंगी होनेकी वजहसे मैं उनकी दलीलको ही यहाँ संक्षेपमें उद्धृत करता हूँ। वे कहते हैं: "चरखा हमें स्वावलम्बी बना सकता है, उससे आरामसे पेट भी भरा जा सकता है लेकिन उसके द्वारा हमारे हाथमें राज्यसत्ता किस तरह आयेगी, यह बात मेरी समझमें नहीं आती। क्लाइवके समय भी चरखा मौजूद था