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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तथापि हम स्वतन्त्रतासे हाथ धो बैठे। इसलिए केवल लंकाशायरके स्वार्थकी समाप्तिसे पूरे इंग्लैंडका स्वार्थ खतम नहीं हो जाता । तात्पर्य यह कि अगर विदेशी कपड़ा बन्द हो जाये तो भी इंग्लैंडका स्वार्थ कायम रहेगा।" उनकी यह शंका सारहीन नहीं है लेकिन 'नवजीवन' के पाठकके लिए इसका उत्तर देना सहल होना चाहिए। तथापि उपर्युक्त मित्रके मनमें, हालाँकि वे 'नवजीवन'के पाठक जान पड़ते हैं, ऐसी शंका उठी मैं इसमें पाठकोंको समझानेकी अपनी शक्तिकी अपूर्णता देखता हूँ । किन्तु मैं आशा करता हूँ कि अगर मैं पाठकोंको यही वस्तु धैर्यपूर्वक अलग-अलग ढंगसे समझाऊँ तो वह पाठकोंके गले अवश्य उतरेगी। क्योंकि मुझे पक्का विश्वास है कि मेरे समझने में कोई त्रुटि नहीं है। वस्तुतः मेरी समझानेकी शक्ति ही दोषपूर्ण है। उपर्युक्त पत्रलेखक कमसे-कम यह बात तो मानते जान पड़ते हैं कि चरखेके द्वारा हम विदेशी कपड़ेका बहिष्कार कर सकते हैं। अगर यह सच है तो मेरा कहना है कि जिस शक्तिके द्वारा हम अनेक प्रकारकी विडम्बनाओं तथा सरकार द्वारा पहुँचाई जानेवाली परेशानियोंके बावजूद विदेशी कपड़ेका बहिष्कार कर सकते हैं तो हमारे लिए वही शक्ति सम्पूर्ण राज्यसत्ता प्राप्त करनेके लिए पर्याप्त होनी चाहिए ।

आइये, अब हम आँकड़ोंकी जाँच करें। हम विदेशी कपड़ेपर ६० करोड़ रुपया खर्च करते हैं। दूसरे नम्बरपर चीनी आती है, उसमें २३ करोड़ रुपये जाते हैं । तीसरे नम्बरपर लोहा आता है, उसपर १६ करोड़ रुपये खर्च होते हैं और इन सबके बाद उल्लेखनीय वस्तु मशीनरी है जिसपर लगभग साढ़े ९ करोड़ रुपये खर्च होते हैं । और लगभग इतने ही रुपये खनिज तेलमें जाते हैं। अन्य वस्तुएँ अपेक्षाकृत कम महत्त्वपूर्ण हैं । यदि हम ६० करोड़ रुपये बचाने के महत् कार्य में सफल हो जायें तो अन्य रकमें बचानेका काम बच्चोंका खेल जान पड़ेगा। तात्पर्य यह कि अगर हम इंग्लैंडकी स्वार्थनीतिके अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भागको रद कर सकते हैं तो अन्य भागोंको बिलकुल खत्म करना कोई असम्भव बात नहीं होगी। और जब ऐसी आदर्श स्थिति उत्पन्न हो जायेगी तब इंग्लैंडका कोई भौतिक स्वार्थ नहीं रह जायेगा; अतः वह सेना आदिकी सहायतासे बलपूर्वक सत्ताको बनाये रखनेकी कोशिश न करेगा, ऐसा मेरा निश्चित मत है ।

आइये, अब इसी वस्तुकी दूसरे तरीकेसे जाँच करें। स्वराज्य प्राप्त करने के लिए ईमानदारी, एकता, दृढ़ता, संगठन-शक्ति, राष्ट्रीय व्यापार-शक्ति, सर्वव्यापक राष्ट्रीयता,वीरता और त्यागकी जरूरत है। जब हम इन सब गुणोंका परिचय देंगे तभी हिन्दुस्तान में फिरसे चरखेका व्यापक रूपसे प्रचार हो सकेगा। जिस राष्ट्रकी प्रजामें इतने गुण हों उसे कोई भी सत्ता गुलाम बनाकर नहीं रख सकती ।

जिस समय हिन्दुस्तान धर्म मानकर विदेशी कपड़ेका त्याग करेगा उस समय हम सरकारको अल्टीमेटम देनेमें समर्थ होंगे, उस समयतक हम इतने तैयार हो चुके होंगे कि अगर सरकार हमारे अल्टीमेटमको स्वीकार नहीं करेगी, हमारी इच्छाका सम्मान नहीं करेगी तो हम लगानबन्दीके लिए तत्पर हो जायेंगे ।

यह बात सच है कि क्लाइव के समय भी हम चरखा चलाया करते थे। उस समयतक हम पराधीन नहीं हो गये थे, लेकिन उसकी शुरुआत जरूर हो गई थी और