पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/११

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भूमिका

इस खण्डमें १४ अप्रैल, १९२१ से १५ अगस्त, १९२१ तक अर्थात् चार महीनों-की सामग्री संगृहीत है। गांधीजीने इसी वर्षमें "एक ही सालके भीतर स्वराज्य" प्राप्त करनेका नारा दिया था। इस अवधिमें उन्होंने जो-कुछ कहा या किया उसका उद्देश्य था, उनकी अपनी कल्पनाके स्वराज्यको स्पष्ट करना, लोगोंको उसके योग्य बनाना और उसे यथासम्भव शीघ्र प्राप्त करने के लिए उन्हें मानसिक रूपसे तैयार करना। उन्होंने पहले 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' में लिखकर और स्थान-स्थानपर भाषण देकर बेजवाड़ा कार्यक्रमपर जोर दिया। तदनुसार मार्च १९२१में तिलक स्वराज्य कोष और कांग्रेसकी सदस्यता तथा चरखेके प्रचारके विषयमें ३० जून तक कितना-कुछ कर डालना चाहिए, इसके आँकड़े निर्धारित कर दिये गये थे ।


गांधीजीने जब"एक वर्षमें स्वराज्य " पानेकी बात कही, तब उनके मनमें यह बिलकुल साफ था कि स्वराज्यकी प्राप्तिकी कुछ शर्तें हैं और उन्हें पूरा किये बिना स्वराज्य नहीं मिल सकता । देश स्वराज्यके योग्य हुआ है या नहीं, वे इसकी कसौटी बेजवाड़ामें किये गये निर्णय, स्वदेशी कार्यक्रमपर अमल तथा अहिंसा और हिन्दू-मुस्लिम एकताकी पूरी-पूरी साधनाको ही मानते थे ।

गांधीजीका विरोध सरकारके तन्त्रसे था। उन्होंने भारतमें जो अंग्रेज थे उनके नाम एक अपील निकाली और कहा कि उन्हें चाहिए कि वे इस देशके लोगोंकी माँगको अपनी माँग बनायें। उन्होंने लिखा: "अपने ही द्वारा प्रस्तुत प्रणालीकी अपेक्षा आदमी स्वयं अच्छा होता है।...यहाँ भारतमें आप जिस प्रणालीसे सम्बन्धित हैं वह इतनी निकृष्ट है कि उसका वर्णन ही नहीं हो सकता । अतः मेरे लिए यह सम्भव है कि आपको बुरा समझे बिना तथा प्रत्येक अंग्रेजपर बुरे उद्देश्यका दोष मढ़े बिना कठोरसे-कठोर शब्दोंमें उक्त प्रणालीकी निन्दा कर सकूं। राजविधि द्वारा गठित हमारा जीवन पारस्परिक अविश्वास और भयपर आधारित है। आप स्वीकार करेंगे कि यह इन्सानियत नहीं है। इस प्रणालीने ... हमें और आपको नीचे गिरा दिया है।" (पृष्ठ ३८०-८१) गांधीजीका उद्देश्य साम्राज्यको परिष्कृत करके एक ऐसे राष्ट्रमण्डलका रूप देना था "जिसमें सभी राष्ट्र यदि चाहें तो संसारकी उन्नति में अपना सर्वोत्तम योगदान करने के लिए और निरे भौतिक बलके बदले वास्तवमें कष्ट-सहन द्वारा संसारके कमजोर राष्ट्रों या जातियोंको अभय देनेके लिए सम्मिलित और सक्रिय हो सकते हैं ।" (पृष्ठ ३०५)

स्वराज्यकी स्थापना कैसे हो ? गांधीजीने इतिहासके अपने ज्ञानके आधारपर यह जाना था कि शुद्ध न्यायकी बिलकुल सीधी-सादी बातका उन [ अंग्रेजों ] पर कोई असर नहीं होता। उनको वह कोई हवाई-खयाल जैसी लगती है। लेकिन जब उसी न्यायकी बातके पीछे शक्ति भी होती है,तब उनकी दूरदर्शिता काम करने लगती है। शक्ति