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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या किया जा सकता है ? मैं स्वीकार करता हूँ कि अधिकांश पैसा मेरे प्रति जनताके वर्तमान मोहके कारण मिलता है। किन्तु जो कार्य हम करनेवाले हैं उसके प्रति जनताका विश्वास और जिस महान् व्यक्तिकी स्मृतिको हम अमर बनाना चाहते हैं--हमारी वह इच्छा भी इसका कारण है। इस बातकी पूरी-पूरी सावधानी बरती गई है कि पैसेका व्यय ठीक ढंगसे हो । गुजरातमें जो रकम इकट्ठी हुई है उसका हिसाब थोड़े समयमें प्रकाशित होगा और समय-समयपर प्रकाशित होता रहेगा। गुजराती भाई-बहनोंको मेरी यह सलाह है और उनसे निवेदन है कि वे तमाम संस्थाओं-को जाग्रत रखें और स्वयं भी जाग्रत रहें। एक करोड़ रुपया इकट्ठा करने और पूरी ईमानदारीके साथ उसे खर्च करनेकी शक्तिपर ही हमारे भविष्यका आधार निर्भर करता है।

एक अन्त्यजका 'खुला पत्र'

भाई जूठाभाई शिवजीने मुझे एक 'खुला पत्र' लिखा है । उसका सार मैं यहाँ प्रस्तुत करता हूँ। वे कहते हैं कि जो हिन्दू अन्त्यजोंके सम्बन्धमें मेरे भाषण सुनते हैं वे सिर्फ मेरी हाँ-में-हाँ मिलाते हैं। उनकी ऐसी धारणा है कि सभामें जिन लोगोंके अनुपस्थित रहनेकी बातपर मैंने अप्रसन्नता व्यक्त की थी' वह अन्त्यजोंके अनुपस्थित रहनेसे सम्बन्धित है और उसका कारण किसी झूठी अफवाहका भय न होकर अन्त्यज भाइयोंका सवर्णोंके प्रति अविश्वास है । भाई जूठाभाई-जैसे विचार रखनेवाले लोगोंको मैं बताना चाहता हूँ कि मैंने जो खेद प्रकट किया था सो अपनेको कट्टर माननेवाले हिन्दुओंकी अनुपस्थिति के कारण किया था। मेरे भाषणमें उनसे अपील की गई थी और इसीलिए मैंने उनकी उपस्थितिकी इच्छा व्यक्त की थी ।

लेकिन अगर यह सच है कि अन्त्यज भाई अविश्वासके कारण सभामें कम संख्या में उपस्थित हुए थे तो यह भी खेदजनक बात है । अन्त्यज परिषद् बुलानेका उद्देश्य समस्त हिन्दू समाजपर प्रभाव डालनेकी अपेक्षा अन्त्यजोंपर प्रभाव डालना अधिक था। इसमें जो प्रस्ताव पास किये गये उनमें से अधिकांश तो आन्तरिक सुधारों से सम्बन्धित थे। इसलिए मैं आशा रखता हूँ कि अबसे अन्त्यज भाई गलतफहमी के कारण परिषद्से दूर नहीं रहेंगे।

भाई जूठाभाई आगे लिखते हैं कि स्वराज्य आन्दोलनसे पहले तो अस्पृश्यताके विरुद्ध आन्दोलन किया जाना चाहिए। हिन्दू समाज अन्त्यजोंपर जो राक्षसी शासन चलाता है, सबसे पहले उसे दूर किया जाना चाहिए। इसके बाद ही अंग्रेजी राज्यकी टीका करना उचित माना जायेगा। भाई जूठाभाईकी इस दलीलके प्रति मेरी सहानुभूति है। लेकिन उनकी इस दलीलमें एक बड़ी भारी भूल है। स्वराज्य प्राप्ति तो पापसे मुक्त होनेका आन्दोलन है। आत्मशुद्धि अर्थात् पापसे मुक्ति । जबतक अन्त्यजोंकी अस्पृश्यता दूर नहीं होती तबतक हिन्दू समाजकी अस्पृश्यता दूर नहीं होगी। दोनोंका परस्पर एक-दूसरेसे निकटका सम्बन्ध है। जबतक अन्त्यजोंकी अस्पृश्यताका पाप दूर नहीं होता तबतक स्वराज्य मिल ही कैसे सकता है ? फलतः मैं समझता हूँ कि जूठाभाई--

१. देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ५७६-८१ ।