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भाषण : मानपत्रके उत्तरमें

जैसे विचार रखनेवाले लोगोंका धीरज धरकर स्वराज्य आन्दोलनमें भाग लेना अत्यन्त आवश्यक है। अन्त्यजोंको अन्य हिन्दू स्वराज्य नहीं देंगे, उसे तो उन्हें खुद ही लेना होगा। जो स्वराज्यकी कल्पनाको समझते हैं वे असहयोगकी आवश्यकताको स्पष्ट रूपसे जाने बिना नहीं रह सकते।

कालोलके हिन्दू

गुजरातके अपने अनुभवोंका वर्णन करते समय मैंने कालोलके महाजनोंके हृदयोंमें अन्त्यजोंके प्रति जो अच्छी भावनाएँ हैं, उसके सम्बन्धमें भी एक टिप्पणी लिखी थी । लेकिन बादमें मुझे पता चला कि मेरे अन्त्यजोंकी बस्तीमें जानेसे वे इतने रुष्ट हुए कि मेरे वहाँसे चले आनेपर उन्होंने कटु शब्दोंका प्रयोग किया और बहुतसे महाजनोंने प्रायश्चित्त स्वरूप स्नान भी किया। यह सुनकर मुझे दुःख हुआ। ऐसा कहा जाता है कि उनके क्रोधका कारण यह था कि कुछ लोगोंने मेरे वहाँसे चले आने के बाद अन्त्यजोंको जबरदस्ती मंडपमें घुसाया । यदि किसीने ऐसा प्रयत्न किया हो तो इसे भी मैं दोष मानता हूँ। हम एक-दूसरेके अच्छे-बुरे विचारोंको सहन करके ही आगे बढ़ सकेंगे। जिन्होंने स्नान किया, जिन्होंने मुझे भला-बुरा कहा उन्हें भी ऐसा करनेका अधिकार था । अन्त्यजोंको स्पर्श करनेको जो पाप मानते हैं उनके साथ जोर-जबरदस्ती करके उनकी भूल नहीं बतानी चाहिए, अपितु धैर्यपूर्वक उन्हें धर्मका रहस्य समझाकर ही अस्पृश्यताके मैलको धोया जा सकेगा। इस घटनासे मैं तो इतना ही सार निकालना चाहता हूँ कि किसीको स्वराज्यके लालचसे अथवा मुझे अच्छा लगे इस लालचसे मौन धारण करने अथवा मनही मन दुःखी होकर अन्त्यजोंका स्पर्श करनेकी जरूरत नहीं है। जो करना हो उसे विचारपूर्वक सोच-समझकर करनेपर ही हम लाभ उठा सकते हैं। झूठी शरम और भय आदि भी स्वराज्य मिलनेमें बाधा रूप हैं।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ८-५-१९२१

४०. भाषण : मानपत्रके उत्तरसें'

१० मई, १९२१
 

आप लोगोंने जिस उत्साहसे मेरा स्वागत किया है उसके वास्ते आप लोगोंको अनेक धन्यवाद । मैं आजके पहले इतनी बार प्रयाग आया हूँ कि मुझे यह अपना घर ही-सा प्रतीत होता है। मेरी हालकी यात्राओंमें मुझे कई नगरपालिकाओंकी ओरसे अभिनन्दन पत्र दिये गये हैं। अभिनन्दन-पत्र देनेका अर्थ यही होता है कि वे असहयोग आन्दोलनसे सहमत हैं और इस स्वराज्य-संग्राममें हमारे साथ हैं। आपकी नगरपालिकाके

१. यह मानपत्र इलाहाबाद जिला सम्मेलनमें नागरिकोंकी ओरसे भेंट किया गया था जिसे पण्डित मोती--लाल नेहरूने पढ़ा था और मौलाना मुहम्मद अलीने सभाकी अध्यक्षता की थी। सम्मेलन में प्रतिनिधियों और

किसानों के अतिरिक्त कस्तूरवा, लाला लाजपतराय, मौलाना शौकत अली, पण्डित रामभजदत्त चौधरी, मौलाना हसरत मोहानी, डा० सैफुद्दीन किचलू, स्वामी श्रद्धानन्द, पुरुषोत्तमदास टण्डन, सरोजिनी नायडू और जवाहरलाल नेहरू भी उपस्थित थे ।

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