पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/११३

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- ९२ सम्पूर्ण गांधी वाड्मय दरिद्रताको समस्याका हल केवल एक है-स्थान-स्थानपर हाथकी कताई। मैं अपन इस विश्वासको और भी जोरदार भाषामे इस प्रकार रखना चाहता हूँ कि भारतवर्ष विना चरखेके आत्मनिर्भर, निर्भीक तथा स्वावलम्बी नही हो सकता। मसूलीपट्टमके श्री कृष्णरावने इसीलिए हाथकताईके कर्तव्य (धर्म) को सहज ही धार्मिक कृत्यके रूपमै स्वीकार किया है। जनताने भी अपनी स्पष्ट सूझबूझके सहारे इसी रूपमें इसे स्वीकार किया है। डा. मित्रके विचारोसे सहमति रखनेवाले सभी लोगोसे में यही अनुरोध करता हूँ कि वे जनताका ध्यान इस मूल तथ्यसे भटकने न दे। हाथकताईमे वे सभी बाते आ जाती है जिनका पत्र-लेखकने सुझाव दिया है, बल्कि उसमें कुछ और भी विशेषताएँ है। समुद्रमे नदीके लाये हुए तत्त्व तो मौजूद रहते ही है। [अग्नेजीसे] यंग इंडिया, ११-५-१९२१ ४५. अली भाइयोंकी क्षमा याचनाका मसविदा [१४ मई, १९२१ अथवा उसके बाद मित्रोने हमारे कुछ भाषणोकी भोर हमारा ध्यान दिलाया है जिनके सम्बन्धमे उनकी राय है कि उनमे हिंसाको भडकानेकी प्रवृत्ति नजर आती है। हम यह कह देना चाहते है कि हमारा इरादा कभी हिंसा भडकानेका नहीं रहा। हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हमारे भाषणोके उन अशोसे जो अर्थ निकाला गया है उनका वैसा अर्थ भी हो सकता है। इसलिए हम हृदयसे अफसोस जाहिर करते है और इन भाषणोके कुछ अशोकी अनावश्यक उग्रताके लिए खेद व्यक्त करते है। हम सार्बजनिक रूपसे यह भी आश्वासन देते है और उन सबसे, जो ऐसा वायदा चाहते है, बायदा करते है कि जवतक असहयोग आन्दोलनसे हमारा सम्बन्ध है तबतक हम फिलहाल या भविष्यमे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूपसे न तो हिंसाकी वकालत करेगे और न हिंसाके लिए तैयार रहनेका वातावरण ही बनायेगे। सचमुच हम इसे उस अहिंसात्मक असहयोगकी भावनाके प्रतिकूल मानते है जिसके लिए हम बचनबद्ध है। [अग्रेजीसे] बॉम्बे क्रॉनिकल, ३०-५-१९२१ १. गाधीनी नव १४ मईको शिमला में वासरायसे मिले थे उस अवसरपर वासराल्ने अली बन्धुओके कुछ भाषणोका उल्लेख करके उन्हें हिंसाको उमारनेवाला बताया था। चूंकि उनका वैसा अर्थ निकल सकता या और चूंकि अली माई असहयोगी होनेके नाते हिंसाका प्रचार करनेकी बात सोच भी नहीं सकते में इसलिए गाधीषाने उन्हें एक ववतन्य निकालकर तदर्थ क्षमा माँगनेकी सलाह दी थी। वक्तव्य २९ मई, १९२१ को प्रकाशित हुआ था । देखिए परिशिष्ट ३ । २. अली मान्योंके वक्तव्यमे यह वाक्य भी जोड़ दिया गया था: “परन्तु हम मानते है कि हमारे मित्रोंक तक और विवेचनमें वजन है।"