पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/१२

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होनी चाहिए; फिर वह निरी भौतिक शक्ति है या आत्मिक शक्ति, इसमें वे कोई अन्तर नहीं करते ।

किन्तु जहाँतक गांधीजीका सवाल है, निश्चित था कि वे अहिंसात्मक असहयोगकी शक्तिसे ही काम लेंगे । हिंसा, गोपनीयता या छल-कपट आदिका सहारा लेना वे सदा निन्दनीय मानते थे। उन्होंने पहली जूनको गुजरात राजनीतिक परिषद्म असहयोगके पक्षमें एक प्रस्ताव रखा। उनके अनुरोधपर अली बन्धुओंने इस आशयका वक्तव्य जारी किया कि विदेशी शत्रुओंसे साँठ-गाँठ करने अथवा हिंसाका आश्रय लेनेका उनका कोई इरादा नहीं था, तब उनकी कड़ी आलोचना हुई । किन्तु वे नीतिको राजनीतिसे बढ़कर मानते थे और इसीलिए उन्होंने अली बन्धुओं द्वारा माफी माँगे जानेका समर्थन किया और कहा : 'यह कदम एक ध्रुवतारा है जो असहयोगकी राहसे भटकनेवाले लोगोंको हमेशा रास्ता दिखाता रहेगा। विरोधियोंकी उपस्थितिमें और इस बातका खतरा उठाकर भी कि उनके आचरणको कमजोरीका लक्षण समझा जा सकता है, असहयोगियोंको निरन्तर अपनी शुद्धि करते चलना है। अपनेको सुधारनेकी प्रक्रिया में उनको इस बातका खयाल नहीं करना चाहिए कि उसकी उनको क्या कीमत चुकानी पड़ती है। सत्यके लिए सत्यके पालनका यही अर्थ होता है।" (पृष्ठ २५४)

१९२०का असहयोग आन्दोलन “निश्चय ही पदवियों, कानूनी अदालतों, स्कूलों,और परिषदोंके साथ जुड़ी हुई प्रतिष्ठाके भ्रमको दूर करने के लिए आवश्यक था । (पृष्ठ १४) उद्देश्यकी प्राप्ति हुए बिना उसे बन्द कर देना सम्भव नहीं था और फिर भी सुविधा यह थी कि लोग अपनी मरजीसे उसे जब चाहें तब अख्तियार कर सकते थे। गांधीजी कहते थे कि इस आन्दोलनका उद्देश्य अंग्रेजोंके मनको भारतीयोंके साथ सम्मानपूर्ण शर्तोंपर सहयोगके लिए तैयार करना था। साथ ही वे यह भी कहते थे कि यदि उन्हें ऐसा सहयोग स्वीकृत न हो तो “वे हमारा देश छोड़कर चले जायें। यह आन्दोलन हम दोनोंके सम्बन्धोंको शुद्ध आधारपर स्थापित करने के लिए है, अपने आत्मसम्मान और अपनी प्रतिष्ठाके अनुकूल उन्हें सुनिश्चित करने के लिए है।"(पृष्ठ १६)

आन्दोलनका मुख्य उद्देश्य आत्मशुद्धि अर्थात् क्षात्र-धर्मका पुनरुत्थान था। हम प्रार्थना भी "स्वराज्यके लिए नहीं बल्कि स्वराज्यके लिए शक्ति प्राप्त करनेके लिए करते हैं।" (पृष्ठ ९८) "हम अंग्रेज-जनताको बदलनेका प्रयास भी नहीं करते। हम तो स्वयं अपने-आपको बदलनेका प्रयास कर रहे हैं । " (पृष्ठ १२१) हिमालय जितनी बड़ी" अपनी भूलके मूलमें उन्होंने “देशकी तैयारीके" (पृष्ठ ६१) विषयमें अपने गलत अनुमानको स्वीकार किया और जब 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने “गांधी--तब और अब " शीर्षकसे उनकी आलोचना की तो गांधीजीने उसका जवाब देते हुए कहा कि पुराने और नये गांधीमें कोई अन्तर नहीं है। अगर अन्तर है तो इतना ही कि "आज गांधी की दृष्टि सत्याग्रहके बारेमें अधिक स्पष्ट है और वह अहिंसाके सिद्धान्तको पहलेसे कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण मानने लगा है।"(पृष्ठ ६१-६२)

गांधीजी आलोचकोंकी उपेक्षा कभी नहीं करते थे । यों तो वे यथासम्भव सबको समयसे उत्तर देनेका प्रयत्न करते थे; किन्तु जब कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुरने उनकी