पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/१२१

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१०० सम्पूर्ण गाधी वाड्मय केवल उसी हालतमे सुलझ सकती है जब भारतके प्रति न्याय किया जाये, किसी दूसरे उपायसे नही। मैं चाहता हूँ कि सब लोग उन लोगोकी तरह बरताव करे जिन्होने कि ननकाना साहबमे अपने पवित्र उद्देश्यकी खातिर अपने प्राण न्यौछावर किये है, न कि महन्त नारायणदासकी तरह जो दूसरोकी जान लेनेपर तुला हुआ था । जब हममें अहिंसा और आत्मत्यागकी भावना आ जायेगी तब आधुनिक अस्त्र-शस्त्र भी हमारी स्वतन्त्रतामे बाधक नहीं हो सकेगे। हमको बार-बार यह सुनाकर डराया जाता है कि अग्रेजोके चले जानेपर हमारे देशपर अफगान लोग आक्रमण कर देगे। किन्तु जबतक मै जीवित हूँ तबतक मैं इस देशके किसी भी भागपर किसी विदेशीका प्रभुत्व नही होने दूंगा। मेरा विश्वास है कि प्रत्येक भारतीय मुसलमानका भी यही मत है। मेरा हिन्दुमोसे अनुरोध है कि वे इस सम्बन्धमे मुसलमानोके भावोके बारेमे कोई सन्देह न करे। मैं चाहता हूँ कि सब धर्मोके लोग मिलकर स्वतन्त्रताके संघर्षमे उनका साथ दे। उन्होंने सफलताके लिए आवश्यक तीन बुनियादी बातोकी विस्तारसे चर्चा की और कहा पहली बात यह है कि हम अपने दिलोसे भय निकाल दे, हिन्दू, मुसलमानो और पठानौसे तथा मुसलमान हिन्दुओसे भय न करे और एक-दूसरेपर अविश्वास न करे । अफगानोका भय एक झूठा होआ है। मै अफगानोके स्वभावको बहुत दिनोसे जानता हूँ। उनमे चाहे जितनी भी कमजोरियां हो किन्तु वे खुदासे डरनेवाले लोग है। मुझे विश्वास है कि वे भारतपर हमला करनेकी बात कभी न सोचेगे। दूसरी ओर मै स्वतन्त्रताको लडाईमे मदद देनेके लिए अफगानोको कभी न बुलाऊंगा। इसके विपरीत यदि अफगानोने हमपर हमला किया तो मैं उनके विरुद्ध भी दृढताके साथ असहयोग करूंगा और जीतेजी मातृभूमिकी एक अगुल-भर जमीनपर कब्जा न होने दूंगा। मै आपसे फिर कहता हूँ कि हिन्दुओ और मुसलमानोके लिए अपने-अपने मनोमे से पारस्परिक अविश्वासको निकालना अत्यन्त आवश्यक है। अब मै दूसरी बुनियादी बातपर आता हूँ। वह है हिन्दू-मुस्लिम एकता। हमने आपसमे जो समझौता किया है वह कोई सौदेबाजीकी भावनासे प्रेरित होकर नहीं किया। हिन्दू मुसलमानोके मामलेमें इसलिए साथ देते है कि वे ऐसा करना अपना कर्तव्य समझते है और जानते है कि भलाईसे' भलाई ही पैदा होती है। इसलिए उनका मुसलमानोको गोवध बन्द करनेके लिए विवश करना घातक होगा। इस सम्बन्धमै केवल वे ही दोषी नही है, फिर गोरक्षाका प्रश्न जोर-जबरदस्तीसे कभी तय होनेवाला नही है। मुसलमानोका मुक्त हृदयसे विश्वास करने और उनको जी खोलकर सहयोग देनेसे अन्तमे हर चीज मिल जायेगी। इस्लामका आधार भलमनसाहत है और यदि वह इसे छोड़ देगा तो वह टिक नहीं सकता। तीसरी दुनियादी वात, जो सबसे महत्त्वपूर्ण भी है, अहिंसा है। इस सम्वन्धमें मैं सिखोसे सविनय अनुरोध करता हूँ कि वे लक्ष्मणसिंह और दलीपसिहका अनुकरण करे, जिन्होने महन्त नारायणदाससे लड़नेमे समर्थ होनेपर भी हिसाका प्रयोग नहीं किया।