पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/१२३

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५१, टिप्पणियाँ . - हाँनिमैन और सावरकर वन्यु दोस्तोने मुझपर श्री हॉनिमनके मामले में उदासीनता बरतनेका दोप लगाया है और कुछ दोस्तोको इसपर भी ताज्जुब है कि मैं सावरकर वन्धुओके' बारेमें इतना कम क्यों लिखता हूँ। वकीलोंमे एक मसल मगहूर है, जो कानूनका पेगा करनेवालोके लिए करीब-करीब नौतिवाय ही बन गई है-टे मुकदमे कानूनको लांछित कर देते है। एक भुक्तभोगीको हैसियतसे मैं जानता हूँ कि यह मसल कितनी ज्यादा सच है। बहुनसे न्यायाधीगोको सर्वथा अन्यायपूर्ण फैसले देनेको मजबूर होना पड़ता है, हालाँकि कानूनी दृप्टिसे वे फैसले विलकुल ठीक होते हैं। कुछ ऐसी ही वात असहयोगके बारेमे भी कही जा सकती है कि असहयोगके लिए पेचीदे मामले अच्छे नहीं होते। छोटेसे अखवारकै सम्पादकके रूपमे, में केवल उन्ही मामलोपर लिख सकता हूँ जिनका सीधा सम्बन्ध देशके सामने उपस्थित मुख्य प्रश्नसे हो। श्री हॉनिमैन या सावरकर वन्धुओके बारेमे लिखनेका मेरा उद्देश्य सरकारी फैसलेको प्रभावित करना नही, जनताको असहयोगके लिए उत्साहित करना ही हो सकता है। श्री हानिमैन बड़े काविल और वहादुर दोस्त है और अगर वे देशमें लौट सके तो मुझे खुशी ही होगी। मैं जानता हूँ कि उनका निर्वासन अन्यायपूर्ण है। सावरकर वन्धुओकी प्रतिभा- का उपयोग जन-कल्याणके लिए होना चाहिए। अगर भारत इसी तरह सोया पडा रहा तो मुझे डर है कि उसके ये दो निगवान पुत्र सदाके लिए हाथसे चले जायेंगे। एक सावरकर भाईको मैं बहुत अच्छी तरह जानता हूँ। मुझे लन्टनमें उनसे भेंटका सौभाग्य मिला था। वे वहादुर है, चतुर है, देशभक्त है। वे क्रान्तिकारी है और इसे छिपाते नहीं हैं। मौजून शासनप्रणालीको बुराईका सबसे भीषण रूप उन्होने बहुत पहले, मुझसे भी काफी पहले, देख लिया था। आज भारतको, अपने देशको, दिलोजानसे प्यार करनेके अपराधमें वे कालापानी भोग रहे है। अगर सच्ची और न्यायी सरकार होती तो वे किसी ऊँचे शासकीय पदको सुशोभित कर रहे होते । मुझे उनके और उनके भाईके लिए बड़ा दुःख है। अगर असहयोग आन्दोलन न होता तो श्री हॉनिमैन लौट आते और दोनों सावरकर वन्धु भी कालेपानीले बहुन पहले छूटकर आ जाते लेकिन अभी तो असहयोग बाधक है। सावरकर वन्धुओकी और जेलकी सजा भोग रहे दूसरे लोगोंकी रिहाईमें जिनकी दिलचस्पी है और जो चाहते है कि श्री हॉनिमैन १. विनायक दामोदर सावरकर और गणेश दामोदर सावरकर प्रमुख क्रान्तिकारी जिन्हें आजन्म काराबासकी सजा दी गई थी पर बादमें १९३७ में रिहा कर दिया गया था। २. हाई क्लेन मेक बैड लो। ३. विनायक दामोदर सावरकरते गांधीनीकी मुलाकात १९०९ में उन्डनमें विजयादशमीक उपलक्ष्यमें मायोजित एक मोजमें हुई थी।